जो संस्कृत जानता है, वह वेद जान लेगा, यह भ्रम है: विनायक रजत भट्ट
नितीश_मिश्र
राँची(खबर आजतक): उच्च शिक्षा में भारतीय ज्ञान परंपरा के उपयोग पर दो दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ आरयू के आर्यभट्ट सभागार में किया गया।यह आयोजन आरयू के आइक्यूएसी और आइकेएस ने संयुक्त रूप से किया। यूजीसी ने भारतीय ज्ञान परंपरा को विकसित कर उच्च शिक्षा में शामिल करने का लक्ष्य रखा है। इसी कड़ी में आरयू में यह कार्यशाला आयोजित की गई जिसका उद्देश्य आधुनिक शिक्षा में भारतीय ज्ञान परंपरा के दर्शन, क्षेत्र और प्रासंगिकता से परिचित कराना था। पाठ्यक्रम बनाने में भारतीय ज्ञान परंपरा आधारित शिक्षण मॉड्यूल को विकसित करना। भारतीय ज्ञान प्रणालियों के क्षेत्र में अनुसंधान और सहयोग को बढ़ावा देना तथा उच्च शिक्षा में भारतीय ज्ञान परंपरा का उपयोग करना है।

इस कार्यशाला में मुख्य अतिथि और वक्ता के रूप में डॉ.अनुराग देश पाण्डेय, यूजीसी आइकेएस डिविजन, पुणे विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ.भरतदास, यूजीसी ट्रेनर और कथा प्रथा के फाउंडर श्री श्री विश्वविद्यालय कटक उड़िसा, डॉ.विनायक रजत भट्ट , आइकेएस के चाणक्या यूनिवर्सिटी बेंगलुरू, डॉ.कुशाग्र राजेन्द्र यूजीसी मास्टर ट्रेनर शामिल हैं।
डीएसडबल्यू डॉ. सुदेश साहू ने कुलपति को सम्मानित कर स्वागत किया तथा सभी मुख्य अतिथियों को भी सम्मानित किया गया। डॉ स्मृति सिंह ने कार्यशाला व उसके उपयोगीता पर प्रकाश डाला।
आरयू कुलपति डॉ. दिनेश कुमार सिंह ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा का उपयोग उच्च शिक्षा में एक बड़ा बदलाव लाएगा। उन्होंने कहा कि प्रकृति ने भारत को हर तरह के संसाधनों से परिपूर्ण बनाया है, इस कारण से हम भारतीय लापरवाह भी हुए है। इन संसाधनों का महत्व हमें इजरायल चीन जैसे देशों को देख कर समझना चाहिए जहाँ भारत से बहुत कम संसाधन हैं और वह इसे संरक्षित करने में दिन रात लगे हुए हैं। डॉ दिनेश कुमार सिंह ने कहा कि किसी भी क्षेत्र के वैज्ञानिक और शिक्षक भारतीय ज्ञान परंपरा के वाहक हो सकते हैं और उच्च शिक्षा के अध्यापन में इसका उपयोग किया जा सकता है।
दिल्ली से आए डॉ. अनुराग देश पांडेय ने कहा कि भारत में इतना समृद्ध ज्ञान है, पर हम भारतीयों को ही इसकी जानकारी नहीं है जबकि विदेशों से लोग हम भारतीयों के संस्कृति और रहन सहन को देखने आते हैं। दरअसल हमारी वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में हमें कभी भी अपने भारतीय ज्ञान परंपरा को जानने सीखने का अवसर ही नहीं मिलता है। अब यह खुशी की बात है कि यूजीसी ने भारतीय ज्ञान परंपरा को वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में समाहित किया है।
बेंगलुरू से आए डॉ. विनायक रजत भट्ट ने कहा कि जो संस्कृत भाषा जानता है वह वेद जान लेगा यह भ्रम है। अपने वक्तव्य में उन्होंने वेदों के अध्ययन में आने वाली कठिनाई की बारीकियों को विस्तार से बताया।
यूजीसी के मास्टर ट्रेनर डॉ. कुशाग्र राजेन्द्र तथा डॉ.भरतदास यूजीसी ट्रेनर और कथा प्रथा के फाउंडर ने भी अपने भारतीय ज्ञान परंपरा के उच्च शिक्षा में उपयोग पर अपने विचार रखे।