झारखण्ड राँची

किशोरावस्था की समस्याएँ एवं चुनौतियों पर कार्यशाला का आयोजन

नितीश_मिश्र

राँची(खबर_आजतक): किशोरावस्था (11-18 वर्ष) जीवन की एक ऐसी अवधि है जिसमें महत्वपूर्ण शारीरिक, भावनात्मक और सामाजिक परिवर्तन होते हैं। यह समय शैक्षणिक दबाव से लेकर सामाजिक चिंता तक, बदलते रिश्तों से लेकर मूड में बदलाव तक कई किशोर-किशोरियों के लिए यह समय और अधिक चुनौतियाँ पैदा करता है क्योंकि वे अपनी बदलती भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को निभाना होता है। इस संदर्भ में किशोरावस्था की समस्या, समस्या की प्रकृति एवं चुनौतियों को समझने एवं उनका शैक्षिणिक रूप से निदान करने के उद्देश्य से CBSE COE पटना के तत्वावधान में कैपिसिटी बिल्डिंग प्रोग्राम (CBP) के अंतर्गत जवाहर विद्या मंदिर, श्यामली के दयानंद प्रेक्षागृह में दो दिवसीय ऑफ हाउस कार्यशाला का आयोजन किया किया ।

‘किशोरावस्था शिक्षा कार्यक्रम’ विषय पर आधारित 16 मॉड्यूल में 10 घंटे (12-13 जुलाई) तक चलने वाली इस कार्यशाला में राँची एवं हजारीबाग के विभिन्न CBSE स्कूलों से 64 शिक्षक – शिक्षिकाएँ हिस्सा ले रहे हैं।
कार्यशाला में रिसोर्स पर्सन के रूप में जुस्को स्कूल, जमशेदपुर की प्राचार्या मिली सिन्हा एवं स्टार इंटरनेशनल स्कूल की शिक्षिका समृद्धि सिंह ने माध्यमिक कक्षाओं में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं किशोरों की विशेषता, मानसिक अवधारणा एवं उनके विचारों को विस्तृत रुप में समझाया और कहा कि इस अवस्था मे होने वाले परिवर्तन बालक के व्यक्तित्व के गठन में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।

इस दौरान मुख्यातिथि के रूप में नीरजा सहाय डी०ए०वी, काँके की प्राचार्य किरण यादव, छात्र कल्याण विभाग के संकायाध्यक्ष अमित रॉय, माध्यमिक विभाग के प्रभाग प्रभारी शीलेश्वर झा ‘सुशील’ मौजूद रहे।

रिसोर्स पर्सन ने सार्थक संवाद शॉर्ट मूवी, सामूहिक क्रिया-कलाप, हास्य-विनोद एकांकी के द्वारा किशोरों की चुनौतियाँ, समस्या की प्रकृति, पारिवारिक संबंध, 21वीं सदी में किशोर होने की समस्याएँ, बुलिंग, मादक पदार्थों की लत, पर्सनल हाइजीन, साइबर क्राइम, मनोविज्ञान और जीवन कौशल आदि विषय पर अध्यापकों को प्रशिक्षित किया। वहीं आगंतुक शिक्षकों ने भी पूरे उत्साह से अपनी स्तिथि दर्ज़ कराई।

वहीं प्राचार्य समरजीत जाना ने अभी आगंतुक शिक्षकों और रिसोर्स पर्सन का स्वागत करते हुए कहा कि किशोरावस्था में शारीरिक एवं मानसिक परिवर्तन के कारण छात्र-छात्राएँ अपने शिक्षक और अभिभावकों को यह नहीं बता पाते, कि वे कैसा महसूस कर रहे हैं। वे कई चीजों को अपने अंदर ही रखते हैं, जो उनके सीखने की क्षमता को प्रभावित करता है। ऐसी परिस्थिति में शिक्षकों के लिए उनसे बात करना और उनके मनोभाव को समझकर सही दिशा देना महत्त्वपूर्ण हो जाता है। उम्मीद है कि किशोरावस्था पर यह कार्यशाला किशोर मन को समझने एवं सकारात्मक व्यक्तित्त्व के निर्माण में मददगार सिद्ध होगा।

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