नितीश_मिश्र
राँची(खबर_आजतक): केंद्रीय सरना समिति के केंद्रीय अध्यक्ष फूलचंद तिर्की ने रविवार को प्रेस बयान जारी करते हुए कहा कि कुरमी हुँकार महारैली प्राकृतिक पूजक मूल आदिवासियों का हकमारी वाला रैली था। कुरमी कभी भी आदिवासी नहीं थे, मूल आदिवासियों का हक अधिकार को लुटने के लिए जबरदस्ती कुरमी/ कुड़मी आदिवासी बनना चाह रहे हैं। 2024 का चुनाव सामने है एवं कुरमी/ कुड़मी अनुसूचित जनजाति के आरक्षित सीट पर कब्जा जमाने के लिए हुँकार महारैली का आयोजन किए हैं। मूल आदिवासियों की परंपरा संस्कृति से कुरमी/ कुड़मी समाज से कोई मेल नहीं खाता है जन्म संस्कार, विवाह संस्कार, मृत्यु संस्कार आदिवासी पहन पुजार माँझी परगनईत से कराते हैं एवं कुरमी जन्म से लेकर मृत्यु संस्कार पंडित के द्वारा संपन्न कराते हैं।
आदिवासी प्राकृतिक पुजारी हैं एवं जल, जंगल, जमीन, पहाड़ पर्वत नदी तालाब एवं अपने पूर्वजों को पुजते हैं एवं उनका प्रमुख त्योहार सरहुल करम है जबकि कुरमी/ कुड़मी मूर्ति पूजक होते हैं एवं प्रमुख त्योहार होली, दीपावली, दशहरा आदि को मनाते हैं। कुरमी/कुड़मी समाज हिंदू धर्म की वर्ण व्यवस्था में आते हैं एवं शिवाजी के वंशज क्षत्रीय में आते हैं जबकि आदिवासी समाज वर्ण व्यवस्था में नहीं आते हैं। उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज किसी भी हाल में कुरमी/ कुड़मी को आदिवासी स्वीकार नहीं करेंगे। जल्द ही आदिवासी समाज कुरमी/ कुड़मी को आदिवासी बनने से रोकने के लिए पूरे देश में एक बड़ा आंदोलन करेगी एवं ईट का जबाब पत्थर से देंगें।