रिपोर्ट : प्रशांत अम्बष्ठ
गोमिया (ख़बर आजतक): हमारी तो किस्मत में ही अँधेरा लिख दिया गया, हम क्या दीवाली मनाएँ|
ठंड, बारिश और गर्मी तिरपाल में ही कट रही जिंदगी, दीपावली जैसा पर्व भी उदासी में ही मनेगा.खुशियों का त्योहार है दीपावली। पर्व की खूबी भी यही है, जिनके हिस्से में कम रोशनी है ऐसे घर भी जगमगा उठते हैं इस दिन। दीपक से निकलने वाला प्रकाश पुंज भी एकरूपता का संदेश देता है। वैसे तो कोई भी ऐसा तबका नहीं रहा, जिसने संक्रमण के सितम काे न झेला हो। इतना जरूर है कि मेहनतकश लोगों के हिस्से में ज्यादा परेशानियाँ आईं और वह सिलसिला अभी थमा भी नहीं है। तंगहाली और बेबसी जरूर हारती जा रही है, लेकिन शहर में ऐसे भी हिस्से हैं जहाँ दीपावली की खुशियों के बीच जिंदगी का संघर्ष देखने को मिल ही जाता हैं, ऐसे ही एक दृश्य शनिवार को गोमिया चौक पर देखने को मिला चारो ओर दुकानें सजी है, लोग अपने अपने परिवार और बच्चो के साथ कीमती सामान खरीदारी करने में लगे थे कही आतिशबाजी और पटाखे खरीदकर लोग अपने बच्चो के चेहरे पर मुस्कान बिखेर रहे थे तो कहीं मिठाइयों के डब्बे लेकर दीवाली की खुशी मानने को आतुर थे इसी बीच एक बेबस बचपन अपने पेट की भूख मिटाने के जुगत में इन सक्षम लोगों और दुकानदारों द्वारा फैलाए गए कचड़े और गंदगी को उठकर एक बॉस्केट जैसे डब्बे में डाल कर दूर तलक ले जाकर फेक कर 2, 5रुपए पा कर फूली न समा रही थी,ऐस लगा जैसे इन पैसों के मिलने से ही इनकी दीवाली मनी….