झारखण्ड बोकारो शिक्षा

छात्र शिक्षक का प्रतिबिंब होते हैं : स्वामी अव्ययानंद सरस्वती

बोकारो (खबर आजतक): चिन्मय विद्यालय में आज परम पज्य स्वामी अव्ययानंद सरस्वती ने शिक्षकों को सम्बोधित किया उन्होने कहा कि भारत के उपनिषदों में , पुराणों में , सभी शास्त्रों में शिक्षण व्यवस्था की और शिक्षण कला का अपूर्व उदाहरण मिलता है उन्होंने कहा कि वैदिक परम्परानुसार गुरू और शिष्य एक-दूसरे के सामने उपस्थित होते है। और परस्पर संवाद स्थापित करते है तो विद्या संधि की उपस्थिति होनी है और मुख्य उद्ेश्य सत्य का उद्घाटन होता है जिससे दोनों गुरू और शिष्य का विकास होता है।

छात्र शिक्षक का प्रतिविंब होते है – उन्हांेने कहा कि शिक्षक के व्यक्तित्व की झलक छात्रों में दिखती है क्योंकि शिक्षक ही छात्रों के व्यक्तित्व और भविष्य के विकास में अहम भूमिका निभाते हैं। इसलिए अपने भूमिका एवं दायित्व को समक्षिये एवं पूर्ण रूपेण इस प्रोफेशन मे मग्न होकर पूरी तन्मयता से अपना अध्यापन कार्य करिये, इसमें चूक होने से ना केवल छात्र और शिक्षक की हानि होगी वरन पीढ़ियाॅ इसका फल भोगेंगी।

स्वविकास की परिभाषा बदलिये – उन्होने आगे कहा कि इन दिनों शिक्षा सहित सभी व्यवसाय में पदोन्नति एवं वेतन दृष्टि ही विकास के रूप में समक्षा जाता है। इसके कोई बुराई नहीं है लेकिन क्या यही सर्वोच्य लक्ष्य होना चाहिए। आपका अपना आंतरिक , मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास कितना हुआ उस पर आपने कभी गौर किया। हमेशा अपनी भूमिका को नित्य प्रभावी बनाने के लिए अपने विषयों से सम्बंधित ज्ञान एवं प्रविधि को जानिये

स्वयं स्वाध्याय एवं आत्मानुशासन पर ध्यान दीजिए।

जैसा छात्र चाहते है वैसा स्वयं बनिए – उन्होने कहा कि शिक्षक – छात्रों के बीच की समस्या का कारण है कि शिक्षक छात्र से सभी प्रकार के उच्च मूल्यों के पालन करने की उम्मीद करता है लेकिन स्वयं नहीं। आप सभी शिक्षक स्वयं पहले सभी मुल्यों का पालन करंें तभी इसका प्रभाव छात्र पर पड़ता है। सूरज दूसरे को चमकाने के लिए नहीं चमकता वह स्वयं को चमकाता है। प्रकाशित रहता है और उसके तेज में सारा जगत प्रकाशित होता है । उन्होने कहा परम पूज्य गुरूदेव स्वामी चिन्मयानंद महाराज के अनुभवों का उल्लेख करते हुए कहा कि गुरूदेव के पास एक बच्चे माता पिता पहुचे और उनसे अपने बच्चे की कमी के वारे मंे बात की और कहा कि स्वामी जी मेरे बच्चे को आप सही मार्ग पर लावें गुरूदेव ने कहा कि पहले तुम दोनों उन मुल्यों को अपनाओं। जीवन में उतारो जो तुम अपने बच्चे से आशा करते हो । ठीक इसी तरह एक शिक्षक के रूप में आप उन सभी मुल्यों को अपनावें जो आप छात्रों से उम्मीद करते है। छात्र आपके प्रतिविम्ब होते है।

आपकी भूमिका माता-पिता के बीच वाली भूमिका होनी चाहिए ना पिता की तरह कढोर और ना माता की तरह अत्यधिक उदार । उन्होनें स्वामी विवेकानंद के प्रसंग की चर्चा करते हुए कहा कि एक पशु की तरह जन्म लेता है जीवन जीता है और पशु की तरह ही देह त्याग करता है । लेकिन मनुष्य एक मनुष्य की तरह जन्म लेता है लेकिन उसमें इतनी क्षमता होती है कि अपने कर्म से अपने गुण जीवन के सर्वोच्च उद्ेश्य को प्राप्त करे अमरता को प्राप्त करे। मृत्यु के  बाद भी वह जीवित  रहे , दूसरों को मार्ग प्रसस्त करने के लिए । इसलिए इस जीवन में जो भूमिका मिली है जो दायित्व मिला है , उसे इतनी शिद्धत से निभाइयें कि आपका भी विकास हो और आपके कर्म से पीढ़ी दर पीढी भी विकसित होती रहे। इस शुभ अवसर पर परम पूज्य स्वामिनी संयुक्तानंद सरस्वती , विश्वरूप मुखोपाध्याय- अध्यक्ष, महेश त्रिपाठी – सचिव , ब्रह्मचारी अन्नया चैतन्या ,प्राचार्य सूरज शर्मा , उप प्राचार्य नरमेंद्र कुमार सहित विद्यालय के शिक्षक उपस्थित थे कार्यक्रम का संचालन सुप्रिया चैधरी ने किया।

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