यह आदिवासी-मूलवासी समाज के लिए ऐतिहासिक क्षण : विजय शंकर नायक
रांची (ख़बर आजतक) : झारखंड की सांस्कृतिक विरासत को नया आयाम देने वाले हटिया निवासी सुप्रसिद्ध ठेठ नागपुरी गायक महावीर नायक को भारत सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया है। यह उपलब्धि न केवल उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि है, बल्कि नागपुरी संस्कृति, झारखंड की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर, और आदिवासी-मूलवासी समाज की पहचान को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाने का प्रतीक बन गई है।

आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच के केंद्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व विधायक प्रत्याशी श्री विजय शंकर नायक ने इस ऐतिहासिक सम्मान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “यह झारखंड के लिए गौरवपूर्ण और प्रेरणादायक क्षण है। महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू द्वारा यह सम्मान प्रदान किया जाना हम सभी झारखंडवासियों के लिए गर्व की बात है।”
श्री नायक ने कहा कि “भिनसरिया राग के राजा” के नाम से विख्यात श्री महावीर नायक ने 1962 से ठेठ नागपुरी गीत-संगीत को अपने जीवन का ध्येय बना लिया था। पिछले पचास वर्षों से भी अधिक समय से उन्होंने अपनी मधुर आवाज और समर्पण के माध्यम से नागपुरी संस्कृति को न केवल संरक्षित किया, बल्कि इसे वैश्विक मंचों तक पहुंचाया।
उन्होंने आगे कहा, “यह पद्मश्री सम्मान केवल श्री महावीर नायक की उपलब्धि नहीं, बल्कि यह उन सभी श्रोताओं और झारखंडवासियों का सम्मान है, जिन्होंने उनकी कला को अपनाया और सराहा। यह सम्मान झारखंड की मातृभूमि, उसकी संस्कृति और कला को समर्पित है।”
विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम की घोषणा
आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच ने घोषणा की है कि वे श्री महावीर नायक के सम्मान में एक विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन करेंगे, जिसमें नागपुरी संस्कृति और भिनसरिया राग को बढ़ावा देने वाले अन्य कलाकारों को भी सम्मानित किया जाएगा।
29 मई को भव्य स्वागत
श्री नायक ने जानकारी दी कि दिनांक 29/05/2025 को 4:30 बजे, जब श्री महावीर नायक दिल्ली से रांची के बिरसा मुंडा एयरपोर्ट पर पहुंचेंगे, तो उनका भव्य स्वागत ढोल, नगाड़ा, मांदर, भेइर और पारंपरिक गाजा-बाजा के साथ किया जाएगा। उन्होंने झारखंडी समाज, विशेषकर घासी समाज से अपील की है कि वे अधिक से अधिक संख्या में एयरपोर्ट पहुंचकर इस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनें और महावीर नायक जी का सम्मान करें।
यह सम्मान न केवल झारखंड के लिए एक संस्कृतिकरण का पर्व है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा भी है कि संस्कृति और कला के प्रति समर्पण किस प्रकार वैश्विक पहचान दिला सकता है।