झारखण्ड राँची राजनीति

“दिशोम गुरु शिबू सोरेन: झारखंड की आत्मा और संघर्ष की अमर गाथा”

लेखक विजय शंकर नायक



झारखंड की धरती आज शोकाकुल है। दिशोम गुरु शिबू सोरेन अब हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनका जीवन, उनकी सोच और उनका संघर्ष आने वाली पीढ़ियों के लिए हमेशा मार्गदर्शन करता रहेगा। वे केवल एक नेता नहीं, बल्कि एक आंदोलन, एक विचार और एक युग थे।


🌱 गरीबी से संघर्ष तक का सफर

11 जनवरी 1944 को रामगढ़ के नेमरा गाँव में जन्मे शिबू सोरेन का बचपन संघर्षों में गुजरा। पिता सोबरन मांझी की हत्या के बाद उन्होंने स्कूल छोड़ दिया और समाज के हक के लिए लड़ाई छेड़ दी। यहीं से शुरू हुआ वह सफर जिसने उन्हें आदिवासी अस्मिता की आवाज बना दिया।

💡 कम लोग जानते हैं कि युवावस्था में शिबू सोरेन कविताएँ लिखते थे। उनकी पंक्तियाँ विद्रोह और अधिकारों की पुकार से गूंजती थीं। यही कविताएँ आगे चलकर धनकटनी आंदोलन की प्रेरणा बनीं।


🌾 धनकटनी आंदोलन: अन्याय के खिलाफ पहली लड़ाई

1960 के दशक में शिबू सोरेन ने तीर-धनुष लेकर आर्थिक शोषण के खिलाफ विद्रोह छेड़ा। सूदखोरों के खेतों से जबरन फसल काटने का यह आंदोलन केवल आर्थिक नहीं बल्कि आदिवासी अस्मिता का प्रतीक बना।

💡 शिबू सोरेन गाँव-गाँव जाकर सांस्कृतिक जागरण सभाएँ करते थे। वे ढोल-मांदर बजाकर आदिवासी गीत गाते और युवाओं को अपनी जड़ों से जोड़ते थे।


🏹 झारखंड मुक्ति मोर्चा और राज्य निर्माण

1970 के दशक में झामुमो की स्थापना कर उन्होंने अलग झारखंड राज्य के लिए संघर्ष शुरू किया। अनगिनत बार जेल गए, लेकिन हार नहीं मानी। आखिरकार 15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य बना—यह उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति का परिणाम था।

💡 उन्होंने शुरुआती दौर में “पंचायत पत्रिका” नाम से स्थानीय भाषाओं में अखबार निकाला, जिससे गाँवों में शिक्षा और जागरूकता फैलाई गई।


❤️ मानवीय चेहरा और संवेदनशीलता

शिबू सोरेन जितने दृढ़ थे, उतने ही संवेदनशील भी। वे गाँवों में रात गुजारते, साधारण लोगों के साथ बैठकर खाना खाते और उनकी समस्याएँ सुनते।

💡 वे गुप्त रूप से आदिवासी बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाते और किताबें बाँटते थे। उनका मानना था—”शिक्षा ही सबसे बड़ा हथियार है।”


⚖️ विवादों के बीच अडिग विश्वास

राजनीतिक जीवन में विवाद भी आए। 2004 के चिरूडीह मामले सहित कई आरोप लगे, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी।

💡 इन कठिन समय में उन्होंने अपनी डायरी में लिखा—”सच्चाई का रास्ता कठिन है, लेकिन अंत में वही जीतता है।”


🏥 अंतिम यात्रा और शोक की लहर

2025 में उनकी तबीयत बिगड़ी। दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में इलाज चला। और अंततः, उनकी मृत्यु ने पूरे झारखंड को शोक में डुबो दिया।


🌳 अमर विरासत

शिबू सोरेन केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक विचारधारा थे। उन्होंने झारखंड को पहचान दी और आदिवासियों को अधिकार दिलाने की लड़ाई लड़ी।

💡 वे पर्यावरण के भी प्रबल समर्थक थे। उन्होंने गाँव में सैकड़ों पेड़ लगवाए और आदिवासियों को जंगल बचाने का संदेश दिया।



🌺 श्रद्धांजलि

“गुरुजी, आपकी आत्मा को शांति मिले। झारखंड की मिट्टी और झारखंडी समाज आपको हमेशा याद रखेगा।”


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