राँची(खबर_आजतक): प्राकृतिक महापर्व सरहुल प्राकृतिक पूजक आदिवासियों का सबसे बड़ा पर्व है। यह त्यौहार चैत्र महीने में शुक्ल पक्ष में द्वितीय, तृतीय में मनाया जाता है कुडूख ये में आदिवासी धरती एवं सूर्य के विवाह के रुप में मानते हैं। इस समय पूरी सृष्टि नए-नए फल फूल से आच्छादित होते हैं, जंगलों में सखुआ फुल एवं पलाश फुल से सुगंधित होते हैं जो कि लोगों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। आदिवासी पूजा से पहले नए-नए फल फूल सब्जी आदि को नहीं खाते हैं। पहले अपने पूर्वजों को इष्ट देव को याद कर उन्हें नए नए फल सब्जी पकावन अर्पित कर अपने एवं परिवार के लोग ग्रहण करते हैं।
प्रत्येक वर्ष द्वितीय शुक्ल पक्ष को आदिवासी उपवास करते हैं। तालाब एवं नदी नालों में मछली, केकड़ा, पकड़ते हैं। गांव के युवा जंगल जाते हैं एवं सखुआ पत्ता सखुआ फुल तोड़कर लाते हैं। महिलाएँ घर की लिपाई पुताई कर स्वच्छ करते हैं, शाम को पहन के द्वारा डाड़ी से घड़े में पानी रखा सरना स्थलों में रखा जाता है एवं सुबह दूसरे दिन घड़े में पानी देखकर मौसम की भविष्यवाणी की जाती है।
शुक्ल तृतीय पक्ष में पहान के द्वारा सरना स्थल में रंगुआ चरका एवं अन्य मुर्गा मुर्गी की बलि देकर गाँव मौजा की सुख समृद्धि की कामना करते हैं और चतुर्थी को फुलखोंसी किया जाता है। शाम को प्रसाद स्वरुप टहरी बनाया जाता है एवं गांव के लोग एकजुट होकर अपने हीत कुटुंब के साथ ढोल मांदर के साथ नाच गाकर उत्सव मनाते हैं।