गोमिया (ख़बर आजतक) : झारखंड के गोमिया प्रखंड के स्वतंत्रता सेनानियों में स्वर्गीय मोहम्मद यासीन अंसारी का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। वर्ष 1973-74 में, जब सरकार ने स्वतंत्रता सेनानियों के लिए पेंशन योजना शुरू की, तब यासीन अंसारी से इस योजना के लिए आवेदन पर हस्ताक्षर लेने के लिए अधिकारी उनके पास पहुंचे। लेकिन अंसारी ने पेंशन लेने से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि उन्होंने आजादी की लड़ाई में अपना कर्तव्य निभाया है, और इसकी कोई कीमत नहीं चाहिए।जमींदार परिवार से होने के बावजूद, यासीन अंसारी ने जमींदारी और महाजनी प्रथा का विरोध किया था।
उन्होंने महात्मा गांधी से प्रेरित होकर अपनी पढ़ाई छोड़ दी और स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने विद्यानंद झा, केबी सहाय, और अनुग्रह बाबू के साथ मिलकर सक्रिय भूमिका निभाई। यासीन अंसारी स्वतंत्रता संग्राम में लगातार सक्रिय रहे और महत्वपूर्ण योगदान दिया। महात्मा गांधी के गोमिया के करमाटांड़ गांव आगमन के दौरान, यासीन अंसारी और अन्य लोगों ने गांधी जी के ठहरने की व्यवस्था होपन मांझी के घर में की थी।
करमाटांड़ की सभा में गांधी जी ने छुआछूत का विरोध करते हुए कहा था कि स्वतंत्रता सेनानी गुलू रविदास के हाथों से जो पानी पियेगा, वही कांग्रेस का सदस्य बनेगा। जब देश की आजादी का समय करीब आया, तो यासीन अंसारी के साडम स्थित घर की छत पर प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों की एक बैठक आयोजित की गई थी, जिसमें आजादी का उत्सव मनाने पर विचार-विमर्श हुआ था।
विधायक के रूप में किया महत्वपूर्ण कार्य
यासीन अंसारी का जन्म 1918 में हुआ था। उन्होंने हजारीबाग मिशन स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और 1941 में पटना कॉलेज से इंटरमीडिएट किया। 1946 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में हजारीबाग ग्रामीण सीट से चुनाव लड़ा और मुस्लिम लीग को हराकर विधायक बने। 1946 से 1952 तक वे बिहार विधानसभा के सदस्य रहे। गोमिया के स्वर्गीय कन्हाई राम और स्वर्गीय हरिपाल तिवारी उनके करीबी सहयोगी थे। यासीन अंसारी ने 40 के दशक में बिहार सेंट्रल मोमिन रिलीफ कमेटी का गठन किया, जिसका मुख्यालय पटना के आलमगंज में था। इस संगठन ने पासमान्दा मुसलमानों को राजनीतिक तौर पर संगठित किया और कांग्रेस के बैनर तले तहरीके आजादी से जोड़ा। 16 सितंबर 1975 को यासीन अंसारी का निधन हो गया। उनके दो पुत्र, स्वर्गीय अजहर अंसारी और इफ्तेखार महमूद, झारखंड अलग राज्य आंदोलन में सक्रिय रहे, और झारखंड सरकार ने उन्हें झारखंड आंदोलनकारी के रूप में सम्मानित किया। यासीन अंसारी के योगदान को झारखंड में आज भी बड़े सम्मान के साथ याद किया जाता है। यासिन अंसारी के पोते अफजल दुर्रानी झारखंड के छात्र राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं, श्री दुर्रानी ने कहा की आजादी के 75 वा अमृत महोत्सव देश बना रही है मगर देश के गई स्वतंत्रता सेनानीयों के परिवार को जो सम्मान मिलाना चाहिए वो अब तक नहीं मिला है,श्री दुर्रानी ने बताया की उन्होंने गोमिया डिग्री कॉलेज का नाम स्वतंत्रता सेनानी यासीन अंसारी के नाम पर रखने को लेकर राज्यपाल को पत्र लिखा है जिसे आने वाली पीढ़ी आने क्षेत्र के महान स्वतंत्रता सेनानी के बारे पता होगा।