झारखण्ड राँची शिक्षा

राँची विश्‍वविद्यालय में आइक्‍यूएसी का एक दिवसीय महत्‍वपूर्ण कार्यशाला संपन्‍न

पीएचडी और शोध का लक्ष्‍य सिर्फ नौकरी पाना न बने, पीएचडी के बाद रिसर्च समाप्‍त नहीं हो जाता: कुलपति

नितीश_मिश्र

राँची(खबर_आजतक): राँची विश्वविद्यालय के आर्यभट्ट सभागार में आइक्‍यूएसी आरयू द्वारा शनिवार को “हाउ टू पब्लिश इन अ रिप्युटेड जर्नल” विषयक एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। राँची विश्‍वविद्यालय में आइक्यूएसी के प्रयासों से पहली बार पीएचडी करने वाले छात्रों, रिसर्च स्‍कॉलरों प्राध्‍यापकों और गाइड्स के लिये ऐसी कोई ज्ञानवर्द्धक कार्यशाला आयोजित की गयी है। इस कार्यशाला के समापन पर सभागार में आये सभी वक्‍ताओं, छात्रों, प्राध्‍यापकों ने इस प्रयास की सराहना की।
इस कार्यशाला में अमिटी युनिवर्सिटी गुरूग्राम के निदेशक प्रो. (डॉ.) सुमित नरुला तथा विनोवा भावे विश्‍वविद्यालय हजारीबाग के पूर्व कुलपति निदेशक प्रो. (डॉ.) रमेश शरण ने पीएचडी, शोध, शोध के प्रकाशन, उद्देश्‍य , फेक जर्नल्‍स से बचाव से संबंधित महत्‍वपूर्ण जानकारियां छात्रों, प्राध्‍यापकों और रिसर्च स्‍कोलरों को दी।

इस कार्यशाला के शुभारंभ में सभागार में उपस्थित सभी लोगों के द्वारा राष्‍ट्रगान के बाद डिप्‍टी डायरेक्‍टर वोकेशनल डॉ. स्‍मृति सिंह ने स्‍वागत भाषण दिया और दोनों मुख्‍य वक्‍ताओं से सबों का परिचय कराया। उसके बाद कुलपति राँची विश्‍वविद्यालय प्रो. (डॉ.)अजीत कुमार सिन्‍हा ने अमिटी युनिवर्सिटी के निदेश डॉ. सुमित नरूला एवं डॉ. रमेश शरण को पुष्‍पगुच्‍छ देकर स्‍वागत किया।

इस दौरान कुलपति ने अपने संबोधन में कहा कि पीएचडी के बाद रिसर्च समाप्‍त नहीं हो जाता, छात्र गाइड, शिक्षक साक्षात्कार और डिग्री के बाद सो जाते हैं। ज्‍यादतर का लक्ष्‍य किसी तरह से नौकरी प्राप्‍त करना रह गया है। इंटरनेट से शोध और रिसर्च पेपर चुरा कर प्रस्तुत किया जा रहा है। हम शिक्षकों की भी लापरवाही है कि हम मार्गदर्शन नहीं करते उनके साथ बैठते नहीं हैं। अब राजभवन में भी बहुत सारी जानकारियां माँगी जा रही हैं। शोधार्थी कौन हैं, कितने हैं, विषय क्या है ? गाइड कौन है ? अब भविष्य में शोधार्थी बच्चों रिसर्च स्कोलर के साथ हम बैठक करेंगे। इस कार्य में हमें शिक्षकों का भी सहयोग चाहिए।

वहीं डॉ. सुमित नरुला ने फेक, ठगी करने वाले फ्राड देशी विदेशी जर्नल्‍स से बचने के उपाय बताए कार्यशाला में अमिटी युनिवर्सिटी के प्रो. डॉ. सुमित नरुला ने रिसर्च पेपर्स को प्रकाशित करने और गलत ठगी करने वाले ऑनलाइन जर्नल्‍स्‍के बारे में विस्‍तार से बताया। उनके सत्र में कई महत्‍वपूर्ण जानकारियाँ निकल कर आयीं। उन्‍होंने प्रोजेक्‍टर पर कई फेक और ठगी करने वाले ऑनलाइन जर्नल्‍स को इंटरनेट के टूल्‍स के माध्‍यम से चेक कर बताया कि ये कैसे ठगी करते हैं और इनसे कैसे बचा जा सकता है। उन्‍होंने प्रोजेक्‍टर पर ऑनलाइन सर्च करके बताया कि अपने रिसर्च पेपर को हमेंशा अच्‍छे से जांच करके वैध और मानक जर्नल्‍स में हम प्रकाशित कर सकते हैं।

डॉ. सुमित नरूला ने बताया कि हजारो जर्नल्‍स की भीड़ में महज सात सौ ही जर्नल्‍स सही हैं। इन सही और वैध जर्नल्‍स के भी क्‍लोन और नकली जर्नल्‍स इंटरनेट पर उपलब्‍ध हैं जो भारतीय रिसर्च स्‍कॉलरों और शोधार्थियों के साथ ठगी कर रहे हैं। रिसर्च स्‍कॉलर भी जल्‍दी से पेपर प्रकाशित करवाने के लालच में इन फेक जर्नल्‍स के झांसे में आ जाते हैं। उन्‍होंने कई टिप्‍स दिये और ऑनलाइन चेक करके दिखाया कि कैसे इन फेक ऑनलाइन जर्नल्‍स पहचान की जा सकती है। डॉ. सुमित नरुला ने कहा कि कोई भी जर्नल्‍आपसे पैसे लेकर एक या दो दिन में आपके पेपर्स को पैसे लेकर प्रकाशित नहीं कर सकता। ऐसा करने वाले सभी ठग हैं। वर्तमान में अंग्रेजी, यूरोपीय, भारतीय भाषाओं में हजारों और 35 से ज्‍यादा चीनी जर्नल हैं जो आपके रिसर्च पेपर को पैसे लेकर प्रकाशित करते हैं यह एक प्रकार से अपराध है और रिसर्च स्‍कॉलरों को ऐसा करने से बचना चाहिए। नकली जर्नल्‍स में प्रकाशित पेपर्स से हमारे कैरियर को नुकसान पहुंचता है। ये हमारी शिक्षा व्‍यवस्‍था को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। विदेशी फेक जर्नल्‍स पर भारत सरकार भी अंकुश नहीं लगा पातीं। हमें यूजीसी के अनुसार स्‍कोपस, वैभव साईंस जैसे वेबसाइटों और टूल्‍स का अवश्‍य उपयोग करना चाहिये। उन्‍होंने सभागार में उपस्थित छात्रों, प्राध्‍यापकों, रिसर्च स्‍कॉलरों के दर्जनों सवालों के जवाब दिए और ऑनलाइन उसका निदान भी करके दिखाया। उन्‍होंने कहा कि नकली, क्‍लोन और फ्रॉड ऑनलाइन जर्नल्‍स में उनके संपर्क, एडिटोरियल टीम, इमेल से लेकर कई जानकारियाँ सही नहीं होतीं। यूजीसी केयर पर जाकर इन जर्नल्‍स का आइएसन नं. अवश्‍य चेक करें।

डॉ. रमेश शरण शोध का उद्देश्‍य स्‍पष्‍ट हो और उसका दायरा इंटरडिसिप्‍लीनरी होकार्यशाला के दूसरे सत्र में झारखंड के वरिष्‍ठ शिक्षाविद् अर्थशास्‍त्री और बिनोवा भावे विश्‍वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. (डॉ.) रमेश शरण ने कहा कि आप के शोध का उद्देश्‍य बिल्‍कुल स्‍पष्‍ट होना चाहिये। हम सभी रिसर्च को सिर्फ खानापुर्ति समझ कर न करें। रिसर्च मेथॉडोलॉजी को हम दर‍किनार करके शोध को पूर्ण नहीं कर सकते। डॉ. रमेश शरण ने शोध के लिये लिटरेचर को सबसे महत्‍वपूर्ण बताया और कहा कि शोध को बिना लिटरेचर के आप पूर्ण नहीं कर सकते।शोध का दायरा इंटर डिसिप्‍लीनरी होने चाहिए । उन्‍होंने कहा कि मैंने स्‍वयं इकोनॉमिक्‍स का छात्र होकर कॉमर्स में पीएचडी किया है।

आर्यभट्ट सभागार में इस जानकारीप्रद कार्यशाला में कुलपति के साथ परीक्षा नियंत्रक डॉ.आशीष झा, कुलसचिव डॉ.मुकुंद चंद्र मेहता, डॉ.जीएस झा, सीसीडीसी डॉ. पी.के. झा, एफओ डॉ. एलएकेएएन शाहदेव, डॉ. आरके शर्मा विभिन्‍न विभागों के हेड , डीन , प्राध्‍यापक आदि उपस्थित थे।

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