दुनिया की 17 प्रतिशत आबादी भारत में : अर्जुन मुंडा
जलवायु प्रदर्शन अब कोई नया शब्द नहीं : सरयू राय
नितीश_मिश्र
राँची(खबर_आजतक) : आरयू के आर्यभट्ट सभागार में गुरुवार को जूलॉजी विभाग में दो दिवसीय संगोष्ठी प्रारंभ हुआ। इस संगोष्ठी का विषय जलवायु परिवर्तन चुनौतियां एवं अवसर है। इस कार्यक्रम के शुभारंभ में पीएफए विभाग के कलाकारों द्वारा राष्ट्रगीत एवं कुलगीत प्रस्तुत किया उसके बाद केंद्रीय आदिवासी कल्याण मंत्री एवं पूर्व मुख्यमंत्री झारखंड अर्जुन मुंडा, जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय, राँची विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. अजीत कुमार सिन्हा संग देश के विभिन्न राज्यों से आए एक्सपर्ट्स, प्राध्यापकों एवं वक्ताओं ने दीप प्रज्जवलन किया। कुलपति ने सबों को पुष्पगुच्छ एवं स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया। राँची विवि के छात्र नितिश मेहुल ने केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, विधायक सरयू राय, कुलपति प्रो. डॉ. अजीत कुमार सिन्हा को कल्पतरु का पौधा देकर सम्मानित किया। इस अवसर पर रिसर्च पेपर के संकलनों की एक पुस्तिका साथ ही जूलौजी विभाग के एक न्यूज लेटर का भी विमोचन किया गया।
इस दौरान केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि दुनिया की 17 प्रतिशत आबादी भारत में हैं। जलवायु परिवर्तन पर हमारी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। सारा विश्व प्रयत्नशील है कि जलवायु परिवर्तन की चुनौती का हम मुकाबला करें। आम व्यक्ति जलवायु परिवर्तन को गंभीरता से नहीं समझता है। आज आमलोगों को इसे समझाने की आवश्यकता है। हमें विकास औश्र जलवायु परिवर्तन के बीच एक सांमजस्य बिठाना होगा। अर्जुन मुंडा ने संगोष्ठी की तारीफ की और कहा कि ऐसे संगोष्ठियों से किसी भी विषय पर नयी जानकारियाँ मिलती हैं। राँची विश्वविद्यालय का उन्होंने आभार जताया।
वहीं सरयू राय ने अपने संबोधन में कहा कि जलवायु प्रदर्शन अब कोई नया शब्द नहीं हैं। पहले औद्योगिक क्रांति से चिमनियों से धुआं निकलता था तो उसे विकास का सूचक मानते थे, परंतु उस वक्त भी चेताने वाले थे पर उनकी बातों को अनसुना कर दिया गया।आज इस धुयें को देख कर चिंता होती है। जब एक डिग्री ही तापमान आज से सौ साल बढा तो इसका प्रभाव देखने को मिला था। आज स्थिति बेकाबू हो रहा है। अगर तापमान ऐसे ही बढा तो पृथ्वी के लिये अस्तित्व संकट हो जायेगा। हमारी पृथ्वी अब बीमार है और जब तक सामान्य व्यक्ति के संस्कार में पृथ्वी को को बचाने, जलवायु परिवर्तन को रोकने का आचरण नहीं आयेगा तब तक हम इस संकट से नहीं निबट सकते। यह सिर्फ वैज्ञानिकों का काम नहीं है।
पर्यावरण संरक्षण की दिलाई गयी शपथ आर्यभट्ट सभागार में सैकड़ो की संख्या में आए छात्रों, शिक्षकों, वक्ताओं तथा प्रेस के लोगों को जूलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया की निदेश धृति बनर्जी ने पृथ्वी के संरक्षण की शपथ दिलायी। सभों ने शपथ ली कि वह हरियाली की रक्षा करने के साथ ही पर्यावरण संरक्षण एवं वृक्षारोपण का कार्य करेंगे। उसके बाद धृति बनर्जी ने स्लाइड शो के माध्यम से जलवायु परिवर्तन एवं इससे होने वाले नुकसान को विस्तार से बताया।
इस संगोष्ठी में इक्फाई युनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. आर.के झा, मुख्य वक्ताओं में कुलपति आरयू प्रो.डॉ. अजीत कुमार सिन्हा, प्रदीप कुमार सेवानिवृत आइएफस झारखंड, जूलॉजिकल सर्वे आफॅ इंडिया की निदेशक धृति बनर्जी, उमाशंकर सिंह सेवानिवृत आइएफएस उत्त्रप्रदेश, प्रो. एम.के.जमुआर, बीएचयू के एस.के.त्रिगुण ने जलवायु परिवर्तन और इससे होने वाले संकट के बारे में विस्तार से बताया।
इस दौरान मुख्य अतिथि प्रो आर.के.झा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक संकट है और हमें मिल कर इस संकट से निबटना होगा।अगर हम पृथ्वी की रक्षा नहीं करेंगे तो पृथ्वी भी हमारी रक्षा नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार सूर्य खुद जलते हुये पृथ्वी पर सभी को जीवन देता है वैसे ही आज हमें जलवायु परिवर्तन के संकट से निबटने के लिये स्वयं प्रयास करना होगा।
हम कालीदास की तरह व्यवहार न करें। सेवानिवृत आइएफएस एवं प्रोजेक्ट टाइगर के निदेशक रहे प्रदीप कुमार ने जलवायु परिवर्तन आ रहे खतरनाक बदलावों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि हमें अभी भी मौका है कि जल थल,नभ को बर्बाद करने से बचायें। हमारा व्यवहार अपनी पृथ्वी के प्रति कालीदास की तरह न हो कि, जिस डाल पर बैठे हैं उसे ही काट दें। जंगलों को आबाद करें, हरियाली को सिमटने न दें। उन्होंने पृथ्वी के संरक्षण के बारे में दिनकर की कई कविताओं का उल्लेख कर रोचक तरीके से आंकड़ों को बताया। उन्होंने कहा कि किसी का इंतजार न करें आज से ही एकल प्रयास शुरू कर दें। चाह लेने पर क्या नहीं हो सकता ?
बढते तापमान से मानसिक रोगों में वृद्धी हो रही है।
बीएचयू से आए प्रो.एस.के.त्रिगुण ने बताया कि जलवायु परिवर्तन पृथ्वी का तापमान बढ रहा है और इसका असर हमारे मस्तिष्क पर भी पड़ रहा है। यही कारण है कि मानसिक रोगियों की संख्या बढी है। उन्होंने बताया कि पारंपरिक जीवन का तरीका ही सबसे सही था। आधुनिक अस्त व्यस्त जीवन शैली ने जलवायु परिवर्तन को बढाया है। पहले राँची में पंखे की आवश्यकता नहीं हेाती थी।
कुलपति प्रो. डॉ. अजीत कुमार सिन्हा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का ही नतीजा है कि रांची जैसे शहर में भी लू चल रही है। उन्होंने अपने विद्यार्थी जीवन को याद करते हुये बताया कि रांची में पंखे की कभी आवश्यकता ही नहीं होती थी। हर रोज बारिश होती थी। आज वनों के विनाश और उससे उपजे जलवायु परिवर्तन ने तापमान को खतरनाक स्तर तक बढा दिया है। अभी भी अवसर है कि हम चेतें और पर्यावरण के विनाश को रोकें।
जलवायु परिवर्तन की अलग से पढाई होनी चाहिये।
इस संगोष्ठी को संबोधित करते हुए प्रो.एम.के. जमुआर ने कहा कि यह एक सार्थक संगोष्ठि का आयोजन है। इसमें देश भर के आये वक्ताओं ने हम सबों को जागरूक करने का काम किया है। उन्होंने कहा कि आज जलवायु परिवर्तन इतना बड़ा संकट है कि इसे अब एक अलग संकाय के रूप में रख कर इसकी पढाई होनी चाहिए।
सभी वक्ताओं ने जूलॉजी डिपार्टमेंट, आरयू तथा आइक्यूएसी के जलवायु परिवर्तन् पर इस संगोष्ठि के आयोजन की सराहना की ।
इस कार्यक्रम का संचालन डिप्टी डायरेक्टर वोकेशनल डॉ. स्मृति सिंह ने किया। धन्यवाद ज्ञापन प्रो. बी.के. सिन्हा एवं सोनी कुमारी तिवारी ने किया। प्रो. बी.के. सिन्हा ने सभी वक्ताओं को समय निकाल कर अन्य राज्यों से आने के लिए आभार जताया।
इस अवसर पर कुलसचिव आरयू डॉ. मुकुंद चंद्र मेहता , एफ.ओ. डॉ. कुमार आदित्यनाथ शाहदेव , डॉ.फिरोज अहमद, एफए डॉ. देवाशीष गोस्वामी , सीसीडीसी डॉ. पी.के.झा, परीक्षा नियंत्रक डॉ. आशीष कुमार झा, एफ.ओ. डॉ. कुमार आदित्यनाथ शाहदेव, डीएसडब्ल्यू डॉ. सुदेश साहु, डॉ. राजकुमार शर्मा , डॉ. जीएस.झा समेत, साईंस डीन डॉ. कुनुल कुंदिर आदि उपस्थित थे।