नितीश_मिश्र
राँची(खबर_आजतक): आज की तेजी से बदलती जीवन शैली, स्कूल का बोझ या माता-पिता की डाँट के कारण बच्चे डिप्रेशन अर्थात् तनाव में आने लगे हैं जिसका दुष्प्रभाव कभी-कभी आत्महत्या के रूप में भी नज़र आने लगी है। इन संवेदनशील मुद्दों पर माता-पिता और शिक्षकों की भूमिका अतिमहत्त्वपूर्ण हो जाती है। इन उद्देश्यों को समर्पित छात्रों में मानसिक व भावनात्मक विकास, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता संबंधी जागरुकता पैदा करने और विद्यालय स्तर पर संचालित स्वास्थ्य गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से CBSE COE, पटना के तत्वावधान में कैपिसिटी बिल्डिंग प्रोग्राम (CBP) के अंतर्गत जवाहर विद्या मंदिर, श्यामली में दो दिवसीय (26-27 अगस्त) कार्यशाला आयोजित की गई। स्कूल हेल्थ एवं वेलनेस विषय पर आधारित 10 घंटे तक चलने वाली इस कार्यशाला में राँची व आसपास के विभिन्न CBSE स्कूलों के 62 शिक्षकों ने हिस्सा लिया।
इस कार्यशाला में रिसोर्स पर्सन के रुप में सुरेन्द्र नाथ सेंटेनरी स्कूल की वरीय अंग्रेजी शिक्षिका गार्गी पाल एवं स्टार इंटरनेशनल स्कूल की जीवविज्ञान की शिक्षिका समृद्धि सिंह ने विद्यालयों में बढ़ती उम्र के बच्चों को पौष्टिक भोजन व पोषण, भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य, बच्चों का अभिभावक, शिक्षकों और दोस्तों के बीच पारस्परिक संबंध, जीवन मूल्य और ज़िम्मेदार नागरिक का औचित्य, लैंगिक समानता, छात्रों में पोषण, स्वास्थ्य व स्वच्छता, मादक पदार्थ के दुरुपयोग की रोकथाम और प्रबंधन, स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा देना, प्रजनन स्वास्थ्य और एचआईवी की रोकथाम, ध्रूमपान, हिंसा बाल अपराध के खिलाफ सुरक्षा, साइबर बुलिंग, इंटरनेट गैजेट्स और मीडिया के उचित उपयोग व प्रचार जैसे अति संवेदनशील 11 मॉड्यूल पर विस्तार से प्रकाश डाला।
इस दौरान तनाव के बारे में रिसोर्स पर्सन ने बताया कि यह एक प्रकार का साइकॉटिक डिसऑर्डर है जिसमें दो सप्ताह या उससे अधिक समय तक के लिए उदासी रहती है। बच्चे को हमेशा नकारात्मक विचार आते हैं और उसका मन किसी भी काम में नहीं लगता है जिससे उसकी रोजमर्रा की जिंदगी अस्त व्यस्त हो जाती है। बच्चों के व्यवहार में परिवर्तन, बिस्तर गीला करना, पसंदीदा सामान से दूरी, ज़िम्मेदारी की उपेक्षा करना, चिड़चिड़ा होना, दोस्तों से दूर होना, स्कूल से लगातार शिकायत, नाखून चबाना, खाने और सोने में बदलाव आदि तनावग्रस्त बालक के लक्षण है।
स्कूली शिक्षा बच्चों के लिए ही है इसलिए रिसोर्स पर्सन के व्याख्यान के केंद्रबिंदु में बच्चे रहे जहाँ उन्होंने संबंधित विषयों पर आधारित अनेक सजीव क्रियाकलाप, वीडियो क्लिप, स्वास्थ्य संवर्धन गतिविधियाँ और प्रश्नोत्तरी के द्वारा 13 समूह में बाँट कर शिक्षकों का ज्ञानवर्धन किया। इससे कार्यशाला में शिक्षक समुदाय में काफी उत्साह नज़र आया।
वहीं प्राचार्य समरजीत जाना ने कार्यशाला में रिसोर्स पर्सन और सभी आगंतुक शिक्षकों का अभिवादन करते हुए उन्होंने कहा कि आजकल की पढ़ाई-लिखाई का बोझ बच्चों के मन पर तनाव पैदा कर रही है। उनका होमवर्क ना होना, पढ़ाई में कम नंबर आना तथा क्लास में पीछे रह जाना इन सभी कारणों से मां-बाप तथा स्कूल में टीचर बच्चों को डाँटते हैं। इससे बच्चों पर भावनात्मक दबाव पड़ता है। माता-पिता तथा अध्यापक हमेशा ही बच्चों पर अधिक नंबर लाने तथा कक्षा में प्रथम आने को कहते हैं हैं जिससे उनका कॉन्फिडेंस लेवल बहुत कम हो जाता है। उन्होंने कहा कि बच्चे हमारा स्वर्णिम भविष्य हैं इसलिए इनसे हमें मित्रवत और सकारात्मक व्यवहार करना चाहिए ताकि बच्चों में हमारे प्रति भय नहीं, बल्कि झुकाव हो। उन्हें खुले मन से अपने भाव और विचार व्यक्त करने दें। अपनी बात थोपने की जगह बच्चों की इच्छा को आपेक्षिक सम्मान दें। बच्चों के साथ क़्वालिटी टाइम बिताएँ, उनसे बात करें।
मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बच्चों के सीखने की अभिक्षमता और ऊर्जा के स्तर को कई गुना बढ़ा देती है। विद्यालय में स्वास्थ्य संवर्धन गतिविधियों के माध्यम से बच्चों को स्वास्थ्य एवं पोषण के बारे में जानकारी और स्वस्थ समाज के प्रति उनके सकारात्मक व्यवहार से ‘स्वस्थ बचपन, खिलता बचपन’ के नारे को सार्थक किया जा सकता है। निःसंदेह cbse द्वारा प्रायोजित स्कूल हेल्थ एवं वैलनेस जैसे कार्यक्रम बच्चों के बचपन को सही आकार देने में सक्षम हो रहे हैं।