झारखण्ड राँची राजनीति

साहेबगंज की जनसभा के पूर्व प्रेसवार्ता में बोले बाबूलाल मरांडी, राज्य के सत्ता संपोषित भ्रष्टाचार, परिवारवाद और तुष्टिकरण के खिलाफ जन जागरण ही संकल्प यात्रा का उद्देश्य

मुख्यमंत्री में नैतिकता बची है तो पद से दें इस्तीफा: बाबूलाल मरांडी

नितीश_मिश्र

राँची(खबर_आजतक): भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने संकल्प यात्रा के दूसरे दिन शुक्रवार को साहेबगंज में प्रेसवार्ता को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले के प्राचीर से भ्रष्टाचार और परिवारवाद को समाप्त करने का आह्वान किया है। उन्होने कहा कि झारखंड में तो राज्य संपोषित भ्रष्टाचार है। मुख्यमंत्री स्वयं राज्य की खनिज संपदा ,जमीन को लूटने में शामिल हैं। सोरेन परिवार ने आदिवासियों की जमीन नाम बदलकर लूटी है। बाबूलाल मरांडी ने कहा कि राज्य के मुखिया ने पदाधिकारियों को लूटने में लगा दिया है। ऑफिसर थाना, ब्लॉक, अंचल में गरीबों से काम के लिए पैसे माँगते हैं। पैसों को ऊपर तक पहुंचाने की बात करते है।

उन्होंने कहा कि हेमन्त सरकार अवैध खनन को बढ़ावा दे रही है क्योंकि इसके उगाही के पैसे मुख्यमंत्री के खाते में जाता है जबकि वैध खनन का पैसा सरकार के खजाने में जाएगा। उन्होंने कहा कि परिवारवाद सामाजिक न्याय के खिलाफ है। सोरेन परिवार की राजनीति पैसे के लिए और कमाने के लिए है राज्य की सेवा के लिए नही इसलिए सोरेन परिवार को डायनेस्टी को राज्य से उखाड़ फेंकने केलिए जनता को संकल्पित होना होगा।

उन्होंने राज्य में व्याप्त तुष्टिकरण को उजागर करते हुए कहा कि राज्य सरकार विधानसभा में नमाज कक्ष खोलती है, सामान्य विद्यालयों को उर्दू विद्यालय में बदल देने, प्रार्थना की पद्धति बदल देने पर कारवाई नहीं करती है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की मनोवृति रखने वालों से राज्य का बड़ा नुकसान हो रहा है।

उन्होंने राज्य में ठप्प विकास कार्य पर कहा कि मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र में केंद्र सरकार द्वारा भेजे गए गरीबों के लिए अनाज की लूट हो रही। केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना हर घर नल जल की स्थिति राज्य में दयनीय है क्योंकि राज्य सरकार को विकास से कुछ भी लेना देना नही है।

उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री आदिवासी का रोना रोते हैं लेकिन राज्य को लूटने का पाप करने के लिए किसी को कानून में छूट नही। हेमन्त सोरेन को पाप के लिए जेल जाना ही पड़ेगा। उन्हे सत्ता में बने रहने का कोई औचित्य नहीं है। अगर उनमें थोड़ी भी नैतिकता बची है तो वे अपने पद से इस्तीफा दें।

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