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श्री श्याम मन्दिर द्वारा आयोजित श्री शिव महापुराण कथा का सप्तम दिवस संपन्न

शिवलिंग भगवान शिव के निर्गुण और निराकर स्वरुप का प्रतीक: स्वामी परिपूर्णानन्द

नितीश_मिश्र

राँची(खबर_आजतक): श्री श्याम मन्दिर में श्री श्याम मण्डल द्वारा आयोजित पावन श्री शिवमहापुराण कथा के सप्तम एवं अंतिम दिन भक्तों का उत्साह वंदनीय था साथ ही पावन कृपा का विदाई का अवसाद भी था। इस दौरान अपराह्न 4 बजे स्वामी परपूर्णानन्द जी के व्यास पीठ पर विराजमान होने के बाद पारंपरिक पूजन वंदन के साथ स्वामी परिपूर्णानन्द ने शिव व्याख्यान को आगे बढ़ते हुए कहा कि – शिवलिंग भगवान शिव के निर्गुण और निराकर स्वरुप का प्रतीक है। सच्चिदानन्द स्वरूप आनंदघन भवान शिव सर्व व्यापी हैं, आगे स्वामी परिपूर्णानन्द ने शिव के विभिन्न अंसावतार व पूर्णावतार का विस्तृत ज्ञान बांटा साथ ही कहा कि उनीसवें कल्प में सत्योजात शिव का अवतार हुआ नाम देव शिव, महाबाहु स्वरूप शिव, अघोर रुप में महादेव आदि अनेक रूपों में शिव ने अवतार लिया, आकाश, पृथ्वी, जल, वायु एवं अग्नि सभी में शिव का वास है साथ ही व्याख्यान को आगे बढ़ाते हुए प्रसंगवश स्वामी जी ने नरसिंह अवतार का सुंदर वर्णन किया।

इस दौरान काल भैरव शिव के हीं अवतार हैं जो काशी में कोतवाल के रुप में विराजमान हैं, साथ ही कहा कि राम भक्त हनुमान शिव के हीं अंशावतार हैं – पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए स्वामी परिपूर्णनन्द ने कहा कि शिव के तेज को पवनदेव ने अंजनी के गर्भ स्थापित किया। इस लिए हनुमान पवन पुत्र, अंजनिसूत, शंकर सुवन व केसरीनंदन कहलाए। इस व्याख्यान को आगे बढ़े हुए स्वामी परिपूर्णनन्द ने द्वादश शिवलिंगों के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला, शिव का श्रृंगार हर स्वरुप में अपने आपमें विशेष है। त्रिशूल दैहिक , दैविक और भौतिक कष्टों के विनाश का सूचक है।

इस दौरान स्वामी परिपूर्णनन्द ने कहा कि रुद्राक्ष भगवान शिव का ही स्वरुप है जो उनकी आँसुओं से प्रकट हुआ, क्रीपुण्ड तिलक, त्रिगुण – सतोगुण, रजोगुण और तपोगुण का प्रतीक है। भस्म आकर्षण, मोह, अहंकार आदि से मुक्ति का प्रतीक है, जटा में गंगा, आध्यात्म की धारा का प्रतीक है। नंदी शिव के गण हैं एवं नाग शिव की कूणडलिनी शक्ति का प्रतीक है। चंद्रमा मन की स्थिरता और आदि से अनन्त का प्रतीक है। कुंडल शिव शक्ति के रुप में श्रृष्टि के सिद्धांत का नेतृत्व करते हैं। डमरु श्रृष्टि के आरम्भ एवं ब्रम्हनाग का प्रतीक है। कमंडल , संतोषी , तपस्वी , अप्रिग्रही जीवन साधना का प्रतीक है। इस प्रकार शिव के ज्योतिलिंगों एवं दिव्य स्वरुप का वर्णन करते हुए स्वामी परिपूर्णनन्द ने शिवमहापुराण कथा को विराम दिया।

अंत में आज के अंतिम दिन का कथा का समापन आरती शहर के प्रसिद्ध डॉ एम. सी. खेतान के परिवार द्वारा किया गया साथ में प्रसाद वितरण के साथ साथ दिनों तक चलने वाली शिवमहापुराण का समापन किया गया।

इस दौरान सुरेश चन्द्र पोद्दार, चन्द्र प्रकाश बागला, श्याम सुन्दर पोद्दार, रमेश सारस्वत, गोपी किशन ढांढनीयाँ, ओम जोशी, मनोज सिंघानिया, धीरज बंका, राकेश सारस्वत, विजय शंकर साबू का सहयोग रहा।

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