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राँची : सरला बिरला मेमोरियल व्याख्यान में न्याय व्यवस्था और विधिक सुधारों पर विमर्श

नितीश मिश्र, राँची

राँची (ख़बर आजतक) : “जब तक न्याय सुलभ, त्वरित और समान रूप से नहीं मिलेगा, तब तक एक न्यायसंगत समाज की कल्पना अधूरी रहेगी।” यह विचार सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने शुक्रवार को सरला बिरला विश्वविद्यालय में आयोजित सरला बिरला मेमोरियल व्याख्यान के दौरान व्यक्त किए।

मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए उन्होंने भारतीय विधिक व्यवस्था की वर्तमान स्थिति, संविधानिक प्रावधानों, न्यायपालिका की भूमिका, और सक्रिय नागरिक भागीदारी जैसे विषयों पर अपने विचार रखे।

उपाध्याय ने ‘रामराज्य’ की अवधारणा का उल्लेख करते हुए कहा कि सभी के लिए समय पर न्याय मिलना ही सच्चे अर्थों में आदर्श शासन व्यवस्था की बुनियाद है।

अपने संबोधन में उन्होंने सिंगापुर की त्वरित न्याय प्रणाली की सराहना की और अमेरिका की फेडरल पीनल कोड की तुलना भारत में हाल ही में लागू भारतीय न्याय संहिता से की। उन्होंने कहा, “यदि अमेरिका का कानून भारत में अक्षरशः लागू किया जाए, तो 25% अपराध स्वतः समाप्त हो सकते हैं।”

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. सी. जगनाथन ने संविधानिक मूल्यों और नागरिक सशक्तिकरण के माध्यम से राष्ट्रीय सुरक्षा को सुदृढ़ करने की आवश्यकता पर बल दिया।

प्रो. गोपाल पाठक (महानिदेशक) ने भारतीय विधिक प्रणाली के ऐतिहासिक विकास की जानकारी दी — मनुस्मृति, अर्थशास्त्र, ब्रिटिशकालीन विधि से लेकर भारतीय संविधान के अंगीकरण तक।
राज्य विधिक प्रकोष्ठ के संयोजक सुधीर श्रीवास्तव ने नीतियों के जमीनी क्रियान्वयन और विधिक सशक्तिकरण की प्रासंगिकता को रेखांकित किया।

कार्यक्रम के अंत में आयोजित इंटरएक्टिव सत्र में छात्रों और संकाय सदस्यों ने अधिवक्ता उपाध्याय से समसामयिक कानूनी मुद्दों पर सवाल पूछे। चर्चा का केंद्रबिंदु राष्ट्रीय सुरक्षा और विधिक सुधारों की भूमिका रही।

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