झारखण्ड धार्मिक बोकारो

अपने मस्तिष्क का सही उपयोग कर नर से नारायण बन सकता है मनुष्य : समणी मधुर प्रज्ञा

बोकारो (ख़बर आजतक) : चास में माणकचंद जी छल्लानी के प्रवास स्थान पर विराजित निर्देशिका समणी मधुर प्रज्ञा जी ने अपने प्रतिदिन की प्रवचन श्रृंखला में शुक्रवार को मनुष्यों के कृत्य और उसके अनुसार मिलने वाले फल के बारे में बताया। श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि अपने कृत कर्म के अनुसार संसारी जीव धार योनियों में जन्म लेता है- नरक योनि, तिर्यञ्च योनि, देव योनि एवं मनुष्य योनि। नरक में जन्म लेने वाला जीव दुःख ही दुःख भोगता है। उसे धर्म ध्यान करने का अवसर ही नहीं मिलता। चारों तरफ वेदना ही वेदना होती है। इसमें जन्म लेने वाला सुख की सांस नहीं ले पाता।

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देव योनि में अर्थात् स्वर्ग में जन्म लेने वाले जीव के चारों तरफ सुख ही सुख होता है। सारी सुख-सुविधाएं उन्हें प्राप्त होती हैं, फिर भी धर्म की आराधना नहीं कर सकता, क्योंकि भोग-विलास में इतना तल्लीन हो जाता है कि उसे धर्म ध्यान की सुध ही नहीं रहती। तिर्यञ्च योनि अर्थात एकइन्द्रिय से लेकर पांच इन्द्रिय वाले जीव इसमें आते हैं। पशु-पक्षी का जगत तिर्यञ्च योनि में आता है। पशु-पक्षी शक्ति से देखे तो बड़े बलवान होते हैं, पर विवेकशील न होने के कारण ये जीव धर्म की साधना नहीं कर पाते। अतः इन तीनों योनियों में जन्म लेने वाला जीव अपनी चेतना को पूर्णरूप से विकसित नहीं कर सकता है।

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मनुष्य योनि में जन्म लेने वाला प्राणी ही धर्म की आराधना-साधना कर सकता है, भक्त से भगवान बन सकता है। अतः चारों योनियों में मनुष्य योनि सबसे श्रेष्ठ बताई गई है। उन्होंने आगे बताते हुए कहा कि संसारी जीव को कुछ चीजें मिलनी बहुत दुर्लभ हैं। सबसे पहला है कि मनुष्य भव मिलना बड़ा दुर्लभ हैं। मनुष्य भव तो मिल गया लेकिन मनुष्यता नहीं तो जीवन को वह नरक बना सकता है। मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जिसे विकसित मस्तिष्क मिला है। यदि वह अपने मस्तिष्क का सही उपयोग करे तो आध्यात्मिक क्षेत्र में वह इतना आगे बढ़ सकता है कि नर से नारायण बनने का मार्ग खोल सकता है। दूसरी दुर्लभता बताते हुए समणी जी ने कहा कि मनुष्य जीवन मिला पर कौन से क्षेत्र में मिला, आर्य क्षेत्र या अनार्य क्षेत्र? अगर अनार्य क्षेत्र में जन्म मिल गया, तो मनुष्य तो वह बन गया किन्तु धर्म का का श्रवण वह वहां नहीं कर सकता। आर्य क्षेत्र में जन्म लेते वालों को यदि साधु-संतों का योग मिल गया, सच्चे गुरु मिल गए तो वो धर्म की साधना कर सकते हैं। अतः, मनुष्य जन्म प्राप्त हमने कर लिया है, आर्य क्षेत्र भी मिला है। जरूरत है अपनी शक्ति का विकास करने की। मौके पर जयचन्द, सुशील, मानकजी, मदन चौरड़िया, रेणु चौरड़िया, प्रमोद चौरड़िया सहित जैन श्वेतांबर तेरापंथ समाज के कई लोग मौजूद रहे। मीडिया प्रभारी सुरेश बोथरा ने इस आशय की जानकारी दी।

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