कसमार गोमिया झारखण्ड बोकारो

झारखण्ड गठन के बाद से अबतक हाथियों ने 1487 लोगो को मार डाला .. जानिये क्या है राज्य के नियम व कानून

रिपोर्ट : प्रशांत अम्बष्ठ

गोमिया (ख़बर आजतक) :झारखंड में विकास की कहानी का सीधा वास्ता आदमी और जानवर के उस टकराव से जुड़ गया है, जिसका खामियाजा आए दिन लोगों को भुगतना पड़ रहा है. मनुष्य और हाथी के टकराव में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है. बता दें यह टकराव, जंगल के पास बसावट बढ़ने, जंगल घटने और जंगली जानकारों के क्षेत्र का अतिक्रमण होने से बढ़ता जा रहा है. हाथी कॉरिडोर डिस्टर्व हो गया है. जंगल से हाथी शहर में पहुंच रहे हैं. राजधानी रांची के सदर अनुमंडल अंतर्गत ईटकी प्रखण्ड में गत सप्ताह हाथी प्रवेश कर गए है. पिछले कुछ दिनों में हाथियों ने पांच लोगों की जान ले ली हाथियों के कुचलने से 4 लोगों की इटकी थाना क्षेत्र मे और एक व्यक्ति की मौत बेड़ो थाना क्षेत्र मे हुई. हाथियों के आतंक को देखते हुए जिला प्रशासन अलर्ट मोड में आया और इटकी प्रखंड में एसडीओ ने निषेधाज्ञा लागू कर दिया.

इतना ही नहीं, पिछले माह एक हाथी झारखंड हाईकोर्ट के नए भवन के पीछे आ गया था. हजारीबाग के शहरी इलाके में हाथियों ने दो लोगों को मार डाला. हजारीबाग के ही केरेडारी थाना क्षेत्र के इतिज गांव में रात एक ही परिवार के 3 लोगों को हाथियों ने मार डाला. झारखंड में हाथियों और मनुष्यों के बीच टकराव की घटना लगातार बढ़ रही है.हाथियों द्वारा मनुष्यों को मारे जाने की खबर हर दूसरे तीसरे दिन मिल रही है. झारखंड गठन से लेकर अबतक 1487 से अधिक लोगों की जान हाथी ले चुके हैं.

वहीं करीब 95 हाथियों की भी जान चली गई है. वर्ष 2009—10 से लेकर अबतक करीब 840 लोगों को हाथियों ने मार डाला. सरकार मुआवजे के रूप में तकरीबन 20 करोड़ रुपए बांट चुकी हैं

बोकारो के गोमिया में पिछले पांच वर्षों में हाथियों का हमले में बढ़ोत्तरी हुई है. आदि दर्जनों गांव हाथियों के उत्पात से प्रभावित हैं. वहीं बोकारो और आसपास के क्षेत्र में जंगली हाथी अब गांव के आसपास अपना बसेरा बना रहे हैं. गांव में ग्रामीणों के घर तोड़ रहे है. फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं. एलिफैंट कॉरिडोर बनाने से लेकर कई योजनाओं पर झारखंड में काम चला रहा है. दूसरी तरफ हाथी और मुनष्य के बीच लगातार हो रही टकराव की घटना चिंता का विषय बन गया है.

जंगल में हाथी खुद को समझ रहे हैं असुरक्षित

आखिर हाथियों का उत्पात क्यों बढ़ रहा है? हाथी जंगल छोड़ गांव और शहर में क्यों दाखिल हो रहे हैं? हाथियों और मनुष्यों के बीच बढ़ रहे टकराव को कैसे रोका जा सकता है? ऐसे कई सलावों का जवाब जानने की कोशिश ख़बर आजतक ने की. 1979 बैच के सेवानिवृत आईएफएफ नरेंद्र मिश्रा से बातचीत की. जिसमें कई चौकने वाली बातें सामने आई. नरेंद्र मिश्रा ने बताया कि झारखंड के जंगलों में हाथी खुद को असुरक्षित महसुस करने लगे है. इसकी कई वजह है. जिसमें जंगल के आसपास उत्खनन, जंगल विस्फोट, नक्सल अभियान और जंगल के तस्कर प्रमुख है.

राजकीय पशु का छीन रहा आश्रयस्थली

झारखण्ड में हाथी राजकीय पशु घोषित है. हाथियों के संरक्षण और सुरक्षा को लेकर कई योजनाओं पर काम चल रहा है. इसके बाद भी हाथी जंगल से बाहर निकल रहे है, गांव और शहर में दस्तक दे रहे हैं, यह बेहद गंभीर है. चिंता का विषय है. नरेंद्र मिश्रा ने बताया कि प्रदेश में सिंहभूम के जंगल हाथियों के प्राकृतिक आवास के लिए काफी मशहूर थे, लेकिन पिछले तीन दशक में हाथियों की प्राकृतिक आश्रयस्थली को काफी क्षति पहुंची है.

विकास कार्यों की वजह से एलिफैंट कॉरिडोर डिस्टर्ब हो गया है

हाथियों का आश्रयस्थली क्षति होने का मुख्य कारण है खनन में बढ़ोतरी और सड़क एवं रेलवे लाइन का विस्तार. वहीं दूसरी तरफ हाथियों के कॉरिडोर में आबादी का बसना सबसे बड़ा कारण है. कॉरिडोर डिस्टर्व होने से हाथियों के आवागमन प्रभावित होता है. जिससे हाथी झुंड में जंगल से बाहर निकलने के लिए मजबूर हो जाते है. जंगल से बाहर निकलते है, तो मनुष्य के साथ टकराव हो जाता है.

क्विक रिस्पांस टीम के लिए बढती घटना बनी चुनौती

वन विभाग चाह कर भी हाथी और मुनष्य के बीच हो रहे टकराव को नहीं रोक पा रहा है. क्योंकि झारखंड में जंगल के आसपास ही आमजन का बसावट बढ़ रही है. नरेंद्र मिश्रा ने बताया कि हाथियों का झुंड जंगल से बाहर निकलता है, तो सबसे पहले खेतों में पहुंचता है. वहां उसे भोजन मिलता है. गांव की ओर जाता है. गांव के घरों में में महुआ, चावल आदि को ग्रामीण स्टॉक कर रखते है. उसकी खुशबू भी हाथियों को खिंचती है. भोजन हासिल करने के लिए ही हाथी घरों को क्षतिग्रस्त करते हैं. हाथी-मानव संघर्ष को रोकने के लिए वन विभाग ने क्विक रिस्पांस टीम का गठन किया है. यह टीम लोगों को जागरूक करती है और वैज्ञानिक और पारंपरिक तरीके से हाथियों को वापस जंगल की ओर भेजने का प्रयास करती है.

झारखंड में सबसे ज्यादा 11 प्रतिशत हाथी

देश के जंगली हाथियों की कुल संख्या का 11 प्रतिशत हाथी झारखंड में हैं. प्रदेश में हाथी राजकीय पशु घोषित है. इसके बाद भी हाथियों की संख्या में लगातार कमी देखी जा रही है. यहां पर पिछली गणना में जहां हाथियों की संख्या 688 थी, वहां यह अब घटकर 555 रह गई है. अंतिम गणना 2017 में हुई थी. हर पांच साल के बाद हाथियों की गणना होती है. गणना के दौरान पाया गया है कि हाथी झारखंड छोड़ पड़ोस के राज्यों में भी शिफ्ट हो रहे हैं.

जाने किस वर्ष कितने लोगों को हाथियों ने बनाया अपना शिकार

2009—10 में 54

2010—11 में 69

2011—12 में 62

2012—13 में 60

2013—14 में 56

2014—15 में 53

2015—16 में 66

2016—17 में 59

2017—18 में 84

2018—19 में 87

2019—20 में 84

2020—21 में 97

2021—22 में 70 करीब

2022—23 में 35

2023_24 में

सरकार की ओर से मुआवजे का भी प्रावधान

मनुष्य की मृत्यु पर – 4 लाख

गंभीर रूप से घायर होने पर- एक लाख

साधारण घायल होने पर- 15 हजार रुपए

स्थायी रूप से अपंग होने पर- 2 लाख

पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त मकान का- 1.30 लाख

गंभीर रुप से क्षतिग्रस्त मकान, पक्का – 40 हजार

साधारण रुप से क्षतिग्रस्त मकान, कच्चा – 20 हजार

भंडारित अनाज, प्रति क्विंटल- 1600 रुपए, अधिकतम 8 हजार

भैंस, गाय व बैल की मृत्यु पर- 15 से 30 हजार

बछड़ा—बाछी की मौत पर- 5 हजार

फसल की क्षति पर – 20 से 40 हजार

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