गोमिया झारखण्ड बोकारो

तेनुघाट डैम को प्रदूषित करने वाले टीटीपीएस के खिलाफ करेंगे आंदोलन : अफजल दुर्रानी

पूरी जिंदगी विस्थापितों के नाम कर दिया अजहर अंसारी ने : अफजल

गोमिया (ख़बर आजतक) : झारखंड आंदोलनकारी और विस्थापित नेता अजहर अंसारी का निधन आज से दो वर्ष पूर्व 17 मार्च को हुआ था। अजहर अंसारी स्वतंत्र सेनानी तथा हजारीबाग ग्रामीण क्षेत्र के बिहार विधानसभा (1946-52) के सदस्य रहे स्वर्गीय तो यासीन अंसारी के दूसरे पुत्र थे, उनका जन्म औरंगाबाद जिला के तेतारचक गांव (रफीगंज प्रखंड) में एक फरवरी 1940 में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा होसिर मध्य विद्यालय से हुई, वर्ष 1976 में नौकरी छोड़ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता ली, पार्टी में गोमिया अंचल सचिव से लेकर जिला सहायक सचिव के पद पर वर्षों तक रहे, कुछ वर्षों तक झामुमो में भी है, बेरमो अनुमंडल विस्थापित संघर्ष मोर्चा और स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी संगठन के जिला अध्यक्ष भी थे, विस्थापितों की समस्याओं को लेकर तथा झारखंड अलग राज्य की मांग को लेकर उन्होंने कई आंदोलन किए और दर्जनों बार जेल भी गए, तेनुघाट के अलावा गिरिडीह और हजारीबाग सेंट्रल जेल में भी रखे गए थे।
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चर्चित विस्थापित नेता और झारखंड आंदोलनकारी अजहर अंसारी की सादगी और ईमानदारी उनकी पहचान थी. बेरमो में विस्थापित आंदोलन के अगुआ रहे स्व. बिनोद बिहारी महतो, पूर्व सांसद स्व. राजकिशोर महतो से लेकर पूर्व विधायक शिवा महत्व, मंत्री जगरनाथ महतो, पूर्व मंत्री जलेश्वर महतो, लालचंद महतो, पूर्व सांसद टेकलाल महतो, पूर्व विधायक खीरू महतो, सीपीआई के नेता मरहूम शफीक खान भी उन्हें मान सम्मान देते थे. अजहर अंसारी ने सीसीएल, डीवीसी के अलावा टीटीपीएस, तेनुघाट डैम आईएल में कई विस्थापितों को नौकरी, मुआवजा व पुनर्वास दिलाने को लेकर कई बड़े आंदोलन किए थे, टीटीपीएस में विस्थापितों की लंबी लड़ाई के कारण उन्हें प्रबंधन के कोपभाजन का भी शिकार होना पड़ा था तथा तीन माह उन्हें जेल की सजा काटनी पड़ी थी. स्वांग स्लरी पौंड में फर्जी बहाली खिलाफ उनके लगातार संघर्ष का ही नतीजा था कि फर्जी रूप से बहाल 275 लोगों को अंततः प्रबंधन को हटाना पड़ा था. टीटीपीएस के ऐश पौंड से होने वाले छाई प्रदूषण के सवाल पर भी उन्होंने मुखर आंदोलन किए. तेनुघाट डैम के निर्माण काल के दौरान वह ठेका मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी व अन्य सुविधा दिलाने को लेकर लड़ाई लड़ी. बाद में तेनुघाट डैम में नौकरी में बहाल हुए. मजदूर आंदोलन के चलते उन्होंने 1972 में डैम प्रबंधन से सस्पेंड कर दिया. इसके बाद उन्होंने कोशी कामगार यूनियन से जुड़कर आंदोलन चलाया. अजहर अंसारी का निलंबन भी वापस हुआ और मजदूरों के लिए कई सुविधा भी बहाल हुई. 1976 में सीपीआई से जुड़े और नौकरी छोड़ दी।
1985 में बनी थी बेरमो अनुमंडल विस्थापित संघर्ष समिति : वर्ष 1985 में विस्थापितों के आंदोलन को नेतृत्व देने के लिए बेरमो कोयलांचल विस्थापित संघर्ष समिति का गठन किया गया था. इसमें स्व. राधा कृष्ण को समिति का अध्यक्ष तथा अजहर अंसारी को महासचिव बनाया गया था. इसके पहले बेरमो विस्थापित संघर्ष समिति बना था जिसके संयोजक अजहर अंसारी व सहसंयोजक काशीनाथ केवट थे. डीआरएडआरडी में काफी समय तक चले आंदोलन के बाद 661 विस्थापितों को नियोजन मिला था. वहीं आंदोलन के दौरान बीएडके एरिया से 86 कर्मियों को कोल इंडिया के सिंगरौली ट्रांसफर किए जाने पर अजहर अंसारी व काशीनाथ केवट के नेतृत्व में तीखा आंदोलन चला था. इसके बाद सभी ट्रांसफर आदेश को वापस लिया गया. तीनों का टाइम के लिए बस 1964 में 97 हजार एकड़ जमीन आसपास के गांव के विस्थापितों से कौड़ी के भाव में ले ली गयी और किसी को नियोजन नहीं दिया गया. चालीसगांव के कुल 2162 परिवारों को विस्थापित किया गया.0इसमें मात्र 448 परिवारों को ही पुनर्वास हो पाया था. शेष 1714 विस्थापित परिवार कहां गये, इसका कोई पता नहीं, इसको लेकर अजहर अंसारी लंबे समय तक तेनुघाट सिंचाई विभाग के खिलाफ आंदोलनरत रहे. इसके अलावा टीटीपीएस मेरी यादों के दखल कब के बाली 18 सौ एकड़ गैरमजरूआ जमीन के विस्थापितों को नियोजन व मुआवजा दिलाने को लेकर भी अजहर अंसारी ने लंबा आंदोलन चलाया. उनके नेतृत्व में विस्थापितों का अंतिम प्रदर्शन और उनके जीवन का आखरी आंदोलन 25 फरवरी 2021 को तेनुघाट एसडीओ कार्यालय में हुआ था.
अखिल भारतीय छात्र संघ के छात्र नेता सह स्वर्गीय अजहर अंसारी के भतीजा अफजल दुर्रानी ने कहा कि तेनुघाट पावर प्लांट तेनुघाट डैम में प्लांट का अच्छाई किरा कर डैम को प्रदूषित कर रहा है और इलाके के लोगों में तरह-तरह की बीमारी हो रही है, काफी संख्या में जानवर भी मार रहे. श्री दुर्रानी ने यह भी कहा कि उनके अधूरे कार्यों को और विस्थापितों की लड़ाई को फिर से जोड़ दिया जाएगा।
अजहर अंसारी जी ने पूरी जिंदगी विस्थापितों के लिए लड़ाई की विस्थापितों को हक और अधिकार दिलाने में अहम भूमिका निभाया है। उनके कार्यों को देख कर उनके सिद्धांत पर चलकर विस्थापितों की लड़ाई को फिर से उजागर किया जाएगा।

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