बोकारो

बोकारो : स्वदेशी के प्रथम शहीद-बाबू गेनू बलिदान दिवस और रोजगार सृजन केंद्र का उद्घाटन संयुक्त रूप रूप से संपन्न

डिजिटल डेस्क

बोकारो (ख़बर आजतक) : स्वदेशी जागरण मंच बोकारो द्वारा यहां कि सेक्टर चार स्थित स्वदेशी मेला कार्यालय में स्वावलंबी भारत अभियान को गति देने के उद्देश्य आज रोजगार सृजन केंद्र का उद्घाटन व स्वदेशी के प्रथम बलिदानी बाबू गेनू का बलिदान दिवस मनाया गया, कार्यक्रम की शुरुआत भारत माता बिरसा मुंडा वह बाबू गेनू की तस्वीर पर माल्यार्पण व दीप प्रज्वलित कर किया गया, मुख्य उद्घाटन करता सह कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे मंच के क्षेत्रीय संयोजक सचिंद्र कुमार बरियार ने कहा कि रोजगार सृजन केंद्र स्थापित किए जाने से यहां की युवाओं को उनकी स्वरुचि के अनुरूप रोजगार का अवसर मुहैया कराने तथा बेहतर मार्गदर्शन के उद्देश्य से स्थापित रोजगार सृजन केंद्र स्वदेशी की राह को और सफलता प्रदान करेगी वही उन्होंने बाबू गेनू के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि 12 दिसम्बर 1930 भारत के स्वदेशी आंदोलन का अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है, इसे आज भी स्वदेशी दिवस के रूप में याद किया जाता है, इसी दिन बाबू गेनू ने अपना बलिदान दिया था, उन्होंने कहा कि लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और महात्मा गांधी के स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन से प्रेरित बाबू गेनू कांग्रेस को चार आने देने वाले एक मामूली सदस्य थे,

वह विदेशी वस्तुओं से भरी लॉरी को रोकते हुए शहीद हो गए और स्वदेशी आह्वान के लिए प्रथम बलिदानी होने का गौरव प्राप्त किया, श्री बरियार ने कहा कि उस समय की अंग्रेज सरकार देश को आर्थिक दृष्टि से लूट रही थी, इंग्लैण्ड में चलने वाली फैक्ट्रियों का उत्पादन बढ़ाने हेतु आवश्यक कच्चे माल के लिए भारत के संसाधनों का दोहन किया जाता था।), अंग्रेजों की इस कुटिल चाल को विफल करने के लिए लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और महात्मा गांधी ने स्वातंत्र्य संग्राम में स्वदेशी अपनाने और विदेशी माल का बहिष्कार करने का प्रबल अभियान चलाया था, स्वदेशी और बहिष्कार का सत्याग्रह देश की अस्मिता का प्रतीक बन गया था, बाबू गेनू ने पूरी शक्ति से इस स्वदेशी आंदोलन में भाग लिया, उन्होंने बताया कि स्वदेशी के प्रथम बलिदानी बाबू गेनू का जन्म पुणे जिले के आंबे गांव तहसील में पहाड़ियों के पार्श्व में बसे गांव महालुंगे पडवक में हुआ था, गेनू के पिता और माता खून – पसीना एक करके खेती किया करते थे, गांव की जमीन बंजर थी। परिवार में भोजन की समस्या रहती थी, बाबू गेनू के पिता इलाज के अभाव में चल बसे, बाबू बचपन से ही कुशाग्र बुध्दि के थे, एक बार पढ़ते ही उन्हें सारी बातें समझ में आ जाती थीं, लेकिन आर्थिक संकटों के कारण उनका स्कूल जाना संभव नहीं था,वह घर के गाय बैल और बकरियां चराने लग गया, एक दिन उसका बैल दूसरे बैल से लड़ते-लड़ते पहाड़ के नीचे गिरकर मर गया, इस घटना के बाद सभी गायें और बकरियां बेंच दी गईं, अब बाबू दूसरे के खेतों पर काम करने लग गए।, वह अपनी मां के साथ मुम्बई आ गया जहां उसकी मां ने उसे एक मिल मेें नौकरी पर रखवा दिया, बाबू के बचपन का मित्र प्रह्लाद तत्कालीन सामाजिक राष्ट्रीय विचारधारा व परिस्थितियों से पूरी तरह परिचित थे, वह बाबू से स्नेह रखते थे,
कालान्तर में बाबू राष्ट्रीय विचारधारा के एक मुस्लिम व्यक्ति के संपर्क में आया जो शिक्षक थे, बाबू उन्हें चाचा कहकर सम्बोधित करते थे, उन्होंने बाबू को समझाया कि, जिस मिट्टी में हम बढ़े हुए हैं उसी की संतान हैं, अपने देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराना हमारा परम कर्तव्य है,चाचा ने बाबू को अंग्रेजों की बर्बरता उनकी आक्रामकता तथा अन्याय के विषय में भी विस्तार से चर्चा की, उन्होंने ही बाबू को महात्मा गांधी का शिष्य बनवाया, 1926 – 27 में बाबू कांग्रेस के वालण्टियर बन गये, 1927 में मई – जून में जातीय दंगों में 250 लोग मारे गए थे और लगभग इतने ही लोग घायल हुए थे, कई जगह कर्फ्यू लगा, कर्फ्यूग्रस्त इलाकों में भी बाबू और उनके मित्र प्रहलाद ने स्वदेशी का प्रचार किया, बाबू ने अपनी स्वतंत्रवाहिनी बनाई और तानाजी पथक संगठित किया और कुछ धन संग्रह करके चरखा बनवाया, बाबू व उनके समस्त मित्रगण प्रतिदिन चरखा अवश्य काटते थे, 1928 में साइमन कमीशन विरोधी आंदोलन में बाबू ने अपने संगठन के साथ बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया, 3 फरवरी 1928 को बाबू ने एक बड़ा जूलुस आयोजित किया और उस दिन पूरे मुम्बई सहित दिल्ली, कलकत्ता, पटना, चेन्न्ई आदि शहरों में भी जोरदार प्रदर्शन हुए, लाहौर के प्रदर्शनों में पुलिस लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय घायल हो गये और उनकी मृत्यु हो गई,महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन में भी बाबू जेल गये, जेल में ही उन्हें अपनी मां के निधन का समाचार मिला, बाबू ने अपने मित्रों से कहा कि, अब मै पूरी तरह से मुक्त हो गया हूं ,भारत माता को मुक्त कराने के लिए कुछ भी कर सकता हूं, अक्टूबर 1830 में बाबू गेनू, प्रहलाद और शंकर के साथ जेल से बाहर आए, बाबू ने घर-घर जाकर स्वदेशी का प्रचार-प्रसार प्रारम्भ कर दिया, दीपावली 1930 के बाद विदेशी माल के बहिष्कार का आंदोलन पूरे देश में फैल गया, बाबू गेनू ने सभी स्वयंसेवकों से मिलकर तय किया कि विदेशी वस्तुएं ले जाने वाले ट्रकों को रोकेंगे, 12 दिसम्बर को सत्याग्रह का दिन तय किया, 12 दिसम्बर 1930 को शुक्रवार का दिन था मुम्बई के कालादेवी रोड पर विदेशी कपड़ों से भरी लॉरियां, ट्रक आदि को रोकने का निश्चय किया गया, मुम्बई के मुलजीजेठा मार्केट से विदेशी कपड़े जाने थे, जिनको रोकने की जिम्मेदारी मुम्बई शहर की कांग्रेस पार्टी ने बाबू गेनू और उनके तानाजी पथक संगठन को सौंपी, मि.फ्रेजर को इसकी जानकारी थी, इसलिए उसने पुलिस बल को पहले ही बुला लिया था, प्रातः साढ़े दस बजे से ही सत्याग्रहियों की टोलियां जयघोष करती हुई आने लगीं, बाबू गेनू के नेतृत्व में तानाजी पथक भी आया, विदेशी माल से भरे ट्रक दौड़ने लगे, विदेशी कपड़ों से भरी हुई लारी आ रही थी इस दौरान बाबू ने लारी रूकवाने का प्रयास किया, कड़े पुलिस बंदोबस्त के बावजूद घोई सेवणकर नामक युवक लारी के सामने तिरंगा लेकर लेट गया, ड्राइवर ने ब्रेक लगाया और गाड़ी रूक गयी, भारत माता की जय और वंदेमातरम के नारों ने जोर पकड़ लिया, वही भीमा घोंई से तुकाराम मोहिते तक यह क्रम चलता रहा, धीरे – धीरे पुलिस का गुस्सा बढ़ता गया, पुलिस ने बल प्रयोग प्रारम्भ कर दिया, सत्याग्रहियों का जोर भी बढ़ रहा था, तभी लॉरी के सामने स्वयं बाबू गेनू आ गए, क्रुध्द पुलिस का नेतृत्व कर रहे अंग्रेज सार्जेण्ट ने आदेश दिया, लॉरी चलाओ, ये हरामखोर मर भी गए तो कोई बात नहीं, ड्राइवर भारतीय था उसका नाम बलवीर सिंह था, उसने लॉरी चलाने से मना कर दिया, अंग्रेज सार्जेण्ट ने स्वयं लॉरी चलानी प्रारम्भ कर दी, लॉरी बाबू गेनू के ऊपर से गुजर गयी, वह गम्भीर रूप से घायल हो गए और पूरी सड़क बलिदानी खून से लाल हो गई, अन्तिम सांसे ले रहे बाबू को निकट के अस्पताल में भर्ती करवाया गया जहां सायंकाल उसकी मृत्यु हो गई, बाबू की अन्तिम यात्रा के दिन पूरा मुम्बई बंद रहा, उसकी याद में उसके गांव महालुंगे पडवल में प्रतिमा स्थापित की गई है, यहां प्रत्येक वर्ष 12 दिसम्बर का दिन बाबू गेनू की स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है, कार्यक्रम का संचालन मंच के जिला संयोजक कुमार संजय ने किया, इस मौके पर दिलीप बर्मा, अमरेंद्र सिंह, संजय वैद्य, जयशंकर प्रसाद, अंजनी सिन्हा, मनीष श्रीवास्तव, प्रमोद कुमार सिन्हा, सुरेश कुमार सिन्हा, नवीन कुमार सिन्हा, विनोद कुमार, ददन, प्रेम प्रकाश, अरविंद सिंह, अवधेश कुमार ,शशांक शेखर, सौरव जायसवाल सहित दर्जनों कार्यकर्ता उपस्थित थे.

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