झारखण्ड राँची

एक्सआईएसएस में खाखा समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर वर्जिनियस खाखा द्वारा दिया गया पहला डॉ कुमार सुरेश मेमोरियल मेमोरियल लेक्चर

विषय: “आदिवासियों की स्थिति: उस समय (2013) और अब (2023)”

नितीश_मिश्र

राँची(खबर_आजतक): जेवियर समाज सेवा संस्थान (एक्सआईएसएस) ने गुरुवार को पहला डॉ कुमार सुरेश सिंह मेमोरियल लेक्चर आयोजित किया। इस कार्यक्रम का आयोजन एक्सआईएसएस के फादर माइकल वान डेन बोगर्ट एसजे मेमोरियल ऑडिटोरियम में किया गया। यह कार्यक्रम डॉ कुमार सुरेश सिंह ट्राइबल रिसोर्स सेंटर, एक्सआईएसएस ने डॉ कुमार के 90वें जयंती पर किया। इस कार्यक्रम का थीम – आदिवासियों की स्थिति – उस समय (2013) और अब (2023) था।
वर्ष 2013 में प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने प्रोफेसर वर्जिनियस खाखा की अध्यक्षता में एक उच्च-स्तरीय समिति (एचएलसी) का गठन किया था जिसके अंतर्गत इस समिति को भारत में आदिवासी समुदायों की सामाजिक-आर्थिक, शैक्षिक और स्वास्थ्य स्थिति की जांच करने और उचित हस्तक्षेप उपायों की सिफारिश करने को कहा गया था।

इस मेमोरियल लेक्चर के मुख्य अतिथियों में प्रोफेसर वर्जिनियस खाखा के साथ – साथ ध्रुव सिंह, डॉ मनमोहन सिंह के बेटे और उनके परिवार के साथ डॉ. मनमोहन सिंह के दोस्तों और सहकर्मियों सहित कई अतिथि शामिल थे जो डॉ मनमोहन सिंह की विरासत का सम्मान करने के लिए उपस्थित थे। इस कार्यक्रम की शुरुआत रिसोर्स सेंटर में डॉ मनमोहन सिंह की फोटो को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ हुई जिसमें सभी गणमान्य व्यक्तियों, एक्सआईएसएस के सभी कार्यक्रमों के प्रमुखों, फैकल्टी और कर्मचारियों ने भाग लिया।

एक्सआईएसएस के निदेशक डॉ जोसेफ मरियानुस कुजूर एसजे ने गर्मजोशी से स्वागत भाषण के साथ कार्यक्रम की शुरुआत की। डॉ जोसेफ मरियानुस कुजूर ने मेमोरियल लेक्चर की रुपरेखा तय की और इस विषय की महत्ता को रेखांकित किया और आदिवासी समाज के लिए डॉ सिंह के कार्य एवं योगदान को विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि “संस्थान को ऐसे प्रतिष्ठित और प्रसिद्ध सिविल सेवक, इतिहासकार और मानवविज्ञानी के नाम पर एक ट्राइबल रिसोर्स सेंटर स्थापित करने पर गर्व है। इस रिसोर्स सेंटर की स्थापना का उद्देश्य इस महान योगदानकर्ता को मान्यता देना और देश भर के विद्वानों को आदिवासी विकास में आगे के शोध के लिए उनके निष्कर्षों से परामर्श करने के लिए प्रोत्साहित करना है। यह मेमोरियल लेक्चर पिछले 10 वर्षों में विभिन्न विकास संकेतकों जैसे ट्राइबल सब-प्लान, स्वास्थ्य, शिक्षा, गरीबी आदि पर आदिवासियों की स्थिति पर चर्चा करता है। मुझे पूरी उम्मीद है कि यह स्मारक व्याख्यान भविष्य में विभिन्न विद्वानों को केंद्र की ओर आकर्षित करेगा और एक्सआईएसएस बड़े पैमाने पर जनजातियों पर साहित्य में योगदान देने में सक्षम होगा।”

वहीं प्रोफेसर एमेरिटस, प्रो. वर्जिनियस खाखा ने मेमोरियल लेक्चर में खाखा समिति की 2014 की रिपोर्ट में उल्लिखित प्रमुख मुद्दों का संदर्भ देते हुए भारत में जनजातीय स्थिति को प्रस्तुत किया। उन्होंने केंद्रीय बजट 2021-22 में अनुसूचित जनजाति घटक (एसटीसी) के लिए ₹78256.31 करोड़ और 2023-24 में अनुसूचित जनजातियों के लिए विकास कार्य योजना के लिए ₹12461.22 के आवंटन का हवाला देते हुए अनुसूचित जनजाति विकास के लिए बजट के उच्च आवंटन पर प्रकाश डाला। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि “बुनियादी ढाँचे और बुनियादी सुविधाओं के मामले में आदिवासी लोगों की स्थिति में सुधार हुआ है। 2012 से 2018 तक, आदिवासी क्षेत्रों में सड़कों और कनेक्टिविटी में 5% की वृद्धि हुई है, जबकि एसटी परिवारों के लिए बिजली कनेक्शन में 12% की वृद्धि, पीने के पानी की सुविधाओं में 11.6% की वृद्धि और शौचालय सुविधाओं में 35% की वृद्धि हुई है।”

हालाँकि, उन्होंने आगे कहा कि 2005-06 के बाद से भारत में जनजातियों के बीच गरीबी भी बढ़ी है। एसटी के बीच कार्य भागीदारी दर (डब्ल्यूपीआर) में 1999-2000 में 70% से घटकर 2017 में 54.1% हो गई है। स्वास्थ्य सेवाओं के संदर्भ में, उन्होंने बताया कि उप-केंद्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों जैसे सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे की कमी है। विशेषकर झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे राज्यों में जनजातीय स्वास्थ्य पर बड़ा प्रभाव पड़ रहा है। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 पर भी चर्चा की, जो क्षेत्रीय भाषा को बढ़ावा देती है, हालाँकि आदिवासी भाषाओं से अनभिज्ञ है और आदिवासी छात्रों के बीच इसका प्रभाव सीमित है।

अंत में उन्होंने इस बात पर चर्चा की कि कैसे आदिवासी लोगों के लिए संविधान में दिए गए सुरक्षात्मक प्रावधानों जैसे सीएनटी एक्ट, संथाल परगना सीएनटी एक्ट, भूमि अधिग्रहण, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन अधिनियम, भारत वन अधिनियम, पर्यावरण सम्बंधित ईआईए प्रक्रिया को कमजोर करने के विभिन्न प्रयास किए गए हैं। उन्होंने उल्लेख किया कि मुख्य मुद्दा इन सुरक्षात्मक उपायों के उल्लंघन में निहित है और जिन प्रमुख मुद्दों का भारत में जनजातियों को सामना करना पड़ा है वे आज भी बरकरार हैं।

डॉ कुमार सुरेश सिंह ट्राइबल रिसोर्स सेंटर के बारे में
एक्सआईएसएस स्थित इस ट्राइबल रिसोर्स सेंटर में लगभग 3500 किताबें, 400 से अधिक हस्तलिपियां, जिनमें बिरसा मुंडा, भारत में जनजातीय आंदोलन, भारतीय जनजातीय समाज आदि सहित कई विषयों पर डॉ कुमार सुरेश सिंह के हस्तलिखित और टाइप किए गए नोट्स उपलब्ध हैं। रिसोर्स सेंटर को डिजिटल बनाने की प्रक्रिया चल रही है जिससे दुनिया भर से इच्छुक लोग इससे जुड़ सकेंगे। इस केंद्र में उपलब्ध इस विशाल संग्रह की सदस्यता और संसाधन केंद्र के समय के बारे में अधिक जानकारी के लिए, कोई भी एक्सआईएसएस लाइब्रेरी को वेबसाइट के माध्यम से जुड़कर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकता है।

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