नौकरी छोड़कर गांवों को झारखंडी संस्कृति में रंग रहे चित्रकार महावीर शामी
बोकारो (ख़बर आजतक) झारखंड के मशहूर माटी चित्रकार महावीर शामी पिछले लगभग 45 दिनों से बोकारो के कसमार प्रखंड के खैराचातर में झारखंडी संस्कृति और राष्ट्रभक्ति की भावना से जुड़े चित्रों के माध्यम से राज्य और देश के संस्कृति को स्थापित करने में जुटे हुए हैं. महावीर शामी का लक्ष्य झारखंड के लगभग सभी 32640 गांवों में झारखंडी संस्कृति को अपने चित्रकारी के माध्यम से दर्शाने और स्थापित करने का लक्ष्य है. इसके लिए इन्होंने अपनी अच्छीखासी नौकरी छोड़ दी है और इस मुहिम में जुटे हुए हैं. सबसे बड़ी बात तो यह है कि घर-परिवार छोड़कर महावीर शामी यह काम निशुल्क कर रहे हैं. पिछले करीब तीन साल से इस कार्य में लगातार जुटे हुए हैं और अब तक राज्य के 9 जिलों (धनबाद, बोकारो, गिरिडीह, हजारीबाग, रांची, खूंटी, रामगढ़ व सरायकेला-खरसावां) के लगभग 120 गांवों में लगभग 35000 वर्ग फीट दीवार को झारखंडी संस्कृति से जुड़े चित्रों के माध्यम से रंग चुके हैं. शुक्रवार को खैराचातर में पत्रकारों से बातचीत करते हुए बताया कि कसमार प्रखंड के खैराचातार पिरगुल और मंजुरा गांव में लगभग 2000 वर्ग फीट दीवाल को झारखंड के संस्कृति से रंग चुके हैं बताएं कि वह अभी यहां कुछ दौर रहेंगे उसके बाद साहिबगंज के निर्वाण होंगे उन्होंने बताया कि अब तक 3000 गांवों से लोग चित्रकारी के लिए आमंत्रित कर चुके हैं.
नौकरी छोड़कर गांवों को झारखंडी संस्कृति में रंग रहे चित्रकार महावीर शामी
रोजी-रोटी के लिए चित्रकारी करने वालों की तो इस दुनिया में भरमार है, पर चित्रकारी के लिए रोजी-रोटी अर्थात नौकरी को त्यागने वाले शायद ही कोई मिले. वह भी एक सम्मानजनक अच्छी-खासी नौकरी को त्यागकर और अपना घर-बार छोड़कर कोई अगर भूखा-प्यासा केवल अपनी संस्कृति को उकेरने, स्थापित करने के लिए मुफ्त में चित्रकारी करने निकल पड़े तो उसे क्या कहेंगे? झारखंडी संस्कृति के दीवाने महावीर महतो बानुआर उर्फ महावीर शामी की चर्चा इन दिनों कुछ इसी वजह से हो रही है. ऐसा नहीं है कि उन्हें अथवा उनके परिवार को इनकी नौकरी की जरूरत नहीं थी. बल्कि यूं कहें, घर-परिवार में अभावों की स्थिति में महावीर के लिए नौकरी की आवश्यकता किसी दीये को जलाए रखने के लिए घी की तरह है. बावजूद इन्होंने यह कड़ा फैसला लिया है और झारखंड की संस्कृति और यहां की खूबियों को उकेरने के लिए खुद को पूर्णतः समर्पित कर दिया है. पिछले करीब एक साल में इन्होंने झारखंड के छह जिलों के करीब 100 गांवों में अपनी चित्रकारी (दीवाल पेंटिंग) के जरिये झारखंडी संस्कृति को उकेरने और उसकी खूशबू बिखेरने का काम किया है. उनकी यह मुहिम निरंतर जारी है. वह अपनी इस कला से झारखंड की खूबसूरती भी बढ़ा रहे हैं. इनका लक्ष्य झारखंड के सभी 32 हजार गांवों में झारखंडी संस्कृति को उकेरना है. इसके लिए इन्हें कई बार तीन-तीन, चार-चार सप्ताह तक अपने घर-परिवार से दूर रहना पड़ता है. इस दौरान जहां जगह मिली सो गए. खाने को जो मिला, उसी में गुजारा कर लिया, पर ये छोटी-मोटी परेशानियां इनके जोश और जुनून के आगे दम तोड़ देती है. झारखंड को झारखंडी संस्कृति में रंगने का जुनून ऐसा है कि कड़ाके की ठंड में भी रात के दस-दस बजे तक खुले आसमान में बैठकर दीवारों में चित्रकारी करते नजर आते हैं. वहीं, गर्मी के दिनों में पसीने से तर-बतर होकर और देह झुलसाकर भी अपनी मुहिम को अंजाम दिया है. इन्होंने मौसम की किसी भी मार की परवाह नहीं की है. साल-दो साल पहले तक इन्हें बहुत कम लोग जानते थे. पर, जिस प्रकार झारखंड को उसकी संस्कृति में रंगने को निकल पड़े हैं, उसके परिणामतः आज राज्य के प्रायः गांवों में इनकी चर्चा हो रही है. राज्य के लगभग छह सौ गांवों से झारखंड के संस्कृति प्रेमियों से इन्हें चित्रकारी के लिए आमंत्रण मिल चुका है. जगह-जगह लोगों से मिल रहा सम्मान और प्यार इन्हें उत्साहित और ऊर्जावान बना रहा है.
धनबाद जिला के बाघमारा प्रखंड स्थित कपूरिया गांव के निवासी महावीर शामी तीन भाइयों और एक बहन में सबसे छोटे हैं. इनके पिता बाबूलाल महतो बीसीसीएल में कार्यरत थे. लेकिन, महावीर जब महज नौ दिनों के थे, उसी समय इनके सिर से पिता का साया उठ गया. उनके असामयिक निधन से पूरा परिवार बेसहारा हो गया था. कुछ दिनों बाद ऐसी भी स्थिति उत्पन्न हो गई कि मां रुदनी महताइन को अपने बच्चों की परवरिश के लिए बस्ती में भीख मांगनी पड़ी. सभी बच्चे छोटे-छोटे थे. रुदनी ने किसी के घर से माड़ तो किसी के घर से नून-भात मांग कर बच्चों का भरणपोषण किया. करीब तीन साल के बाद उन्हें अनुकंपा पर जॉब मिली, तब जाकर घर की स्थिति में कुछ सुधार हुआ. उन्हें अनुकंपा पर बीसीसीएल की आकाश किनारी कोलियरी, कतरास में ऑफिस में साफ-सफाई का काम मिला था. महावीर शामी में कला के प्रति रुचि बचपन से रही है. इनकी मां बताती हैं कि वह जब घर में गोबर निपाई करती थी, तब सभी के सो जाने के बाद महावीर रात-रात भर जागकर पेंसिल चॉक से घर की जमीन पर चित्र बनाया करता था. जब स्कूल जाने के दिन आये, तब वहां भी तरह-तरह के चित्र बनाना शुरू कर दिया. उन दिनों बहुत अच्छा चित्र नहीं बना पाते थे, पर मन में चित्रकार बनने का सपना ही संजोये हुए था. इस सफर में सिंगडा महुदा निवासी वरिष्ठ चित्रकार व कला केंद्र के शुकर महतो इनके मार्गदर्शक बने. उन्होंने चित्रकला में इनकी दिलचस्पी को देखते हुए इन्हें बीएचयू से फाईन आर्ट्स करने की सलाह दी. 2008 में बीएचयू में रैंक आठ से दाखिला हुआ. फिर बीएफए किया और विजुअल आर्ट्स की पढ़ाई बीएचयू वाराणसी से पूरी की. 2013-2015 में मास्टर ऑफ फाइन आर्ट्स इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय अंतरराष्ट्रीय चित्रकार वी नागदास के सानिध्य में रहकर पूरा किया. इसके बाद इन्होंने बीएड कॉलेज, धनबाद में कला व्याख्याता के रूप में नौकरी शुरू की. करीब तीन वर्ष के बाद सीबीएसई स्कूल, गुजरात में नौकरी करने का अवसर मिला. अभी दो वर्ष ही बीते थे कि झारखंड में भोजपुरी, मगही समेत कतिपय अन्य भाषाओं को सरकारी नियुक्तियों में मान्यता देने को लेकर शुरू हुए आंदोलन ने इनका ध्यान खींचा और वापस लौटकर इसका हिस्सा बन गए. आंदोलन में जान फूंकने और आंदोलनकारियों में उत्साह भरने के लिए नौकरी छोड़ दी और गांवों में घूम-घूमकर झारखंडी संस्कृति से जुड़े विषयों पर दीवाल पेंटिंग शुरू कर दी. पिछले करीब तीन साल से यह सब बिल्कुल निःशुल्क करते आ रहे है. बैंक अकाउंट पूरी तरह से खाली हो चुका है. अपने कुछ प्रशंसकों से स्वेच्छा से कुछ मदद मिल जाती है तो उसी से किसी प्रकार खर्च निकाल लेते हैं. वह अपनी बाइक से ही घूमकर यह कार्य कर रहे हैं. अब तो बाइक भी जवाब देने लगी है. तीन बार उसका इंजन खुल चुका है. महावीर बताते हैं कि मां और पत्नी के सहयोग के बिना यह संभव नहीं है. पहले मां ने कला की डिग्री दिलवाई. कभी पैसों के लिए मना नही की. गांठ खोल के पैसे देती थी और कहती थी कि ब्रश व रंग खरीदो और चित्रकारी सीखो. उसी तरह अब पत्नी का सहयोग मिलता है. वह बिना पैसों के भी प्यार व उत्साह बढ़ाती है. न अच्छा और महंगा पहनने की फरमाइश है न किसी और चीज की. हालांकि, मां को नहीं पता है कि पिछले एक साल से मुफ्त में चित्रकारी कर रहे हैं. इसलिए घर जाने पर कभी राशन तो कभी सब्जी लाने को कहती है. उस समय इन्हें चुप रह जाना पड़ता है. चुपके से जनवितरण दुकान जाकर सस्ता अनाज लाते हैं और घर में देकर निकल जाते हैं. महावीर कहते हैं कि इस अभियान में अब वह पीछे नहीं हटेंगे. चाहे मिट जाना ही क्यों न पड़े. वह सोशल मीडिया में भी यह बात खुलकर लिखते हैं कि इस अभियान से रोकने के लिए उन्हें मिटाना पड़ेगा. वह कहते हैं कि अलग राज्य तो अवश्य बना, पर झारखंड की मूल संस्कृति छिन्नभिन्न हो गई है. लोग भाषा-संस्कृति से विमुख होते जा रहे हैं और अस्मिता का संकट बढ़ता जा रहा है. इसी बात ने उन्हे विचलित किया है और झारखंड को झारखंडी संस्कृति से रंगने और माटी का कर्ज उतारने निकल पड़े हैं. वह कहते हैं कि अपने लिए तो सभी जीते हैं, पर भाषा-संस्कृति के लिए जीना भी जरूरी है. महावीर के अनुसार, वे यह कार्य निःशुल्क इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि समाज के पास इसका कोई बजट नहीं हैं. और गांवों को इसलिए लक्ष्य बनाया है, क्योंकि झारखंड की मूल संस्कृति गांवों में समाहित हैं. गांव के लोग शहर नही जा पाते हैं कि वहां अपनी संस्कृति से जुड़े चित्रों को देख सके. महावीर ने कहा : जब-तक जिंदा हूं, झारखंड की संस्कृति के लिए निःशुल्क कार्य करूंगा. झारखंड की संस्कृति को मिटने नहीं दूंगा. इसी माटी का नून-भात खाकर चित्रकारी सीखे हैं. इसलिए पूरे झारखंड को उसकी संस्कृति में निःशुल्क रंगना ही अब जीवन का लक्ष्य है. वे बिरसा मुंडा, विनोद बाबू, शहीद शक्तिनाथ महतो, सुनील महतो जैसे महापुरुषों की तस्वीरें भी जगह-जगह बना रहे हैं. परिवार का भरणपोषण इस तरह कब-तक चलेगा और चार साल के एकलौते बेटा का भविष्य क्या होगा? यह पूछने पर महावीर भावुक होकर कहते हैं कि झारखंड की भाषा, संस्कृति और अस्मिता के लिए अगर कुछ करना है तो कुछ कुर्बानी तो देनी ही होगी. बताया कि अभी भी कई जगहों से नौकरी के लिए नियुक्ति का पत्र मिला है, पर इस अभियान में अब वह पीछे नहीं लौटेंगे.
महावीर को राज्य सरकार से यह है अपेक्षा
राज्य में संस्कृति को लेकर सरकार के स्तर से कोई विशेष कार्य नहीं होने पर महावीर शामी नाराज हैं. झारखंड की हेमंत सोरेन की नई सरकार से उन्हें उम्मीद है कि यह सरकार अपनी दूसरी पारी में इस दिशा में ठोस पहल करेगी. उनकी मांग है कि झारखंड के समस्त सरकारी स्कूलों में सरकार कला-संस्कृत की पढ़ाई शुरू कराए. इसके अलावा राज्य में आर्ट स्कूल, आर्ट कॉलेज व आर्ट यूनिवर्सिटी बनाने, सभी 32640 गांवों में झारखंड संस्कृति केंद्र बनाने, शहीदों की स्मृति में संग्रहालय बनाने, छऊ नृत्य, झूमर, ढोल मांदर एवं नटवा नाच के कलाकारों को प्रशिक्षण एवं पेंशन उपलब्ध कराने, पाइक नाच प्रशिक्षण अकादमी सभी जिला में बनाने, बारह मासे तेरह पर्व के उत्थान के लिए कल मंत्रालय द्वारा सालाना बजट पारित कर भगता, टुसू, जितिया, करम, सरहुल आदि को मजबूती से स्थापित करने, कुम्हार परिवार, सूप टोकरी बुनकर परिवार को स्किल के तहत जीविका हेतु मासिक पेंशन देने, कच्चा धातु के कलाकारों को राज्य सरकार द्वारा पेंशन व धातु का बर्तन बनाने के लिए स्टूडियो उपलब्ध कराने, घांघि चुका बनाने वाले हस्त कारीगरों को चिन्हित कर पेंशन दिलाने, क्षेत्रीय भाषा खोरठा, कुड़मालि, संथाली समेत अन्य भाषाओं के संगीतकारों के लिए संगीत कला स्टूडियो उपलब्ध कराने, हल-जुआइठ, बैलगाड़ी बनाने वाले कुशल कलाकारों को जीविका हेतु पेंशन देने,।चित्रकार गीतकार, कलाकार, हास्य कलाकार समेत सभी कलाकारों को कला मंत्रालय द्वारा आर्थिक सहयोग करने, धनुष गुलेल पचलन, बांसुरी वादन से संबंधित कला स्कूलों व कॉलेज में सिलेबस में जगह देने, सोहराय कल को जीवंत रखने के लिए वरिष्ठ महिला सोहराय कलाकारों को जीविका हेतु पेंशन देने, झारखंड फिल्म टेलीविजन ऑफ व झारखंड क्षेत्र भाषा और अकादमी खुलने, झारखंड किसी भी विद्या के कलाकार के निधन में मंत्रालय द्वारा सहायता कोर्स धन राशि जीविका हेतु उपलब्ध कराने, 60 से अधिक उम्र वाले कलाकारों को पेंशन देने आदि मांग की है.
मुझे गर्व है अपने पति पर : ममता
मेरे पति महावीर शामी ने एक कठिन राह चुनी है. आज के समय में जब लोग सिर्फ अपने फायदे के बारे में सोचते हैं, वैसे में मेरे पति ने झारखंड की संस्कृति को अपने चित्रकारी के माध्यम से स्थापित करने के लिए जो कदम उठाया है, वह वाकई अद्भुत है. इस कार्य मे मेरे पति कभी-कभी महीनों घर नहीं लौटते हैं. चार साल का इकलौता पुत्र अपने पिता को खोजता रहता है. कहता है पापा घर क्यों नहीं आते? इस कार्य में वे किसी से कोई शुल्क नहीं लेते. घर परिवार किसी तरह से चल रहा है. आर्थिक संकट होने के बावजूद पति में इस अभियान को लेकर एक जुनून समय हुआ है. आर्थिक तंगी के चलते कई तरह की दिक्कत तो होती है,।लेकिन इस बात की खुशी है कि राज्य की संस्कृति को स्थापित करने के लिए मेरे पति ने इतना बड़ा कदम उठाया है. मुझे अपने पति पर गर्व है. वह इस अभियान में सफलता प्राप्त करें, यही हमारी कामना है.